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________________ ८] જ્ઞાનાંજલિ ग्रन्थों पर मिलते हैं वैसे ही कागजके ग्रन्थों पर भी हैं। इसी तरह कागज़ तथा कपड़े पर आलिखित अलंकारखचित विज्ञप्तिपत्र, चित्रपट भी बहुतायतसे मिलते हैं। पाठे ( पढ़ते समय पन्ने रखने तथा प्रताकार ग्रन्थ बाँधनेके लिये जो दोनों ओर गत्ते रखे जाते हैं - पुद्रे), डिब्बे आदि भी सचित्र तथा विविध आकारके प्राप्त होते हैं। डिब्बोंकी एक खूबी यह भी है कि उनमेंसे कोई चर्मजटित हैं, कोई वस्त्र जटित हैं तो कोई कागज़से मढ़े हुए हैं। जैसी आजकल को छपी हुई पुस्तकोंकी जिल्दों पर रचनाएँ देखी जाती हैं वैसी इन डिब्बों पर भी ठप्पोसे - साँचोंसे ढाली हुई अनेक तरहको रंग-बिरंगी रचनाएँ हैं। ऊपर जो परिचय दिया गया है वह मात्र दिग्दर्शन है जिससे प्रस्तुत प्रदर्शनीमें उपस्थित की हुई नानाविध सामग्रीकी पूर्वभूमिका ध्यानमें आ सके । यहाँ जो सामग्री रखी गई है वह उपर्युक्त भाण्डारोंमेंसे नमूनेके तौर पर थोड़ी थोड़ी एकत्र की है। जिन भाण्डारोका मैंने ऊपर निर्देश नहीं किया उनमेंसे भी ध्यान खींचे ऐसी अनेक कृतियाँ प्रदर्शिनीमें लाई गई हैं, जो उस उस कृतिके परिचायक कार्ड आदि पर निर्दिष्ट हैं। ताड़पत्र, कागज़, कपड़ा आदि पर किन साधनोंसे किस किस तरह लिखा जाता था ?, ताड़पत्र तथा कागज़ कहाँ कहाँसे आते थे ?, वे कैसे लिखने लायक बनाए जाते थे ?, सोने, चाँदीकी स्याही तथा इतर रंग कैसे तैयार किए जाते थे?, चित्रकी तूलिका आदि कैसे होते थे? इत्यादि बातोंका यहाँ तो मैं संक्षेपमें ही निर्देश करूँगा। बाकी, इस बारेमें मैंने अन्यत्र विस्तारसे लिखा है। लेखन विषयक सामग्री ताड़पत्र और कागज़ - ज्ञानसंग्रह लिखवाने के लिये भिन्न भिन्न प्रकारके अच्छेसे अच्छे ताड़पत्र और कागज़ अपने देशके विभिन्न भागोंमें से मंगाए जाते थे । ताड़पत्र मलबार आदि स्थानोंमें से आते थे। पाटन और खम्भातके ज्ञानभाण्डारोंमें से इस बारेके पन्द्रहवीं शतोके अन्तके समयके उल्लेख उपलब्ध होते हैं। वे इस प्रकार हैं : ॥ सं १४८९ वर्षे ज्ये० वदि । पत्र ३५४ मलबारनां ॥ वर्य पृथुल संचयः ॥ श्री ॥ पाटनके भाण्डारमें से भी इसीसे मिलता-जुलता उल्लेख मिला था। उसमें तो एक पन्नेकी कीमत भी दी गई थी। यद्यपि वह पन्ना आज अस्तव्यस्त हो गया है फिर भी उसमें आए हुए उल्लेखके स्मरणके आधार पर एक पन्ना छह आनेका आया था। ग्रन्थ लिखनेके लिये जिस तरह ताड़पत्र मलबार जैसे सुदूरवर्ती देशसे मंगाए जाते थे, उसी तरह अच्छी जातके कागज़ काश्मीर और दक्षिण जैसे दूरके देशोंसे मंगाए जाते थे। गुजरातमें अहमदाबाद, खम्भात, सूरत आदि अनेक स्थानोंमें अच्छे और मज़बूत काग़ज़ बनते थे । इधरके व्यापारी अभी तक अपनी बहियोंके लिये इन्हीं स्थानोंके कागज़का उपयोग करते रहे हैं। शास्त्र लिखनेके लिये सूरत से कागज़ मंगानेका एक उल्लेख संस्कृत पद्यमें मिलता है। वह पद्य इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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