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________________ २ विज्जाशास्त्रका आंतर स्वरूप-६७, सांस्कृतिक सामग्री-६९, अंगविज्जा ग्रंथका अध्ययन और अनुवाद-७०. नन्दिसूत्रके प्रणेता तथा चूर्णिकार नन्दीसूत्रके प्रणेता-७२, चूर्णिकार-७४, (१) आचाराङ्गचूणि-अन्त :-७४, (२) सूत्रकृताङ्गणि-अन्त :-७४, (३) भगवतीचूणि-७४, (४) जीवाभिगमचूणि-७५, (५) प्रज्ञापनाशरीरपदचूणि-अन्त :-७५, (६) जम्बूद्वीपकरणचूर्णि-अन्त :-७५, (७) दशाश्रुतस्कन्ध चूर्णि-अन्त :-७५, (८) कल्पचूर्णि-७५, (8) कल्पविशेषचूणि-अन्त :-७५, (१०) व्यवहारचूणि-अन्त :-७५, (११) निशीथ विशेषचूणि-आदि :-७५, अन्त :-७५, (१२) पञ्चकल्पचूर्णि-अन्त :-७६, (१३) जीतकल्पबृहच्चूणि-अन्त :-७६, (१४) आवश्यकचूणि-अन्त :-७६, (१५) दशकालिकसूत्रअगस्त्यसिंहचूणि-अन्त :-७७, (१६) दशकालिकसूत्रचूणि वृद्धविवरणाख्या-अन्त :-७७, (१७) उत्तराध्ययनचूणि-अन्त :-७७, .. (१८) नन्द सूत्रचूणि-अन्त :-७७, (१६) अनुयोगद्वारसूत्रचूर्णि-अन्त :-७७, (२०) पाक्षिकसूत्रचूणि-अन्त :-७८, अगस्त्यसिंहीयाचूर्णि-८०, सूत्र और चूणिकी भाषा-८३. ५. नन्दोसूत्रके वृत्तिकार तथा टिप्पनकार नन्दीसूत्रकार-८४, लघुवृत्तिकार श्रीहरिभद्रसूरि-८४, दुर्गपदव्याख्याकार श्रीश्रीचन्द्रसूरि-८४, श्रीश्रीचन्द्रसूरिका आचार्यपद-८६, ग्रन्थरचना-८७, मलधारी श्रीहेमचन्द्र सूरिकृत नन्दिटिप्पनक-६२, नन्दीविषमपदटिप्पनक-६४. ६. महाराजा खारवेलसिरिके शिलालेखकी १४वीं पंक्ति छाया-६८; अथ-६८; चूर्णी-88; टीका-88.. ७. आराधनापताका और वीरभद्र ८. रामायणका अध्ययन पउमचरियं-१०६; त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित सप्तम पर्व-१०७; वसुदेवहिंडी-१०७; चउपण्णमहापुरिसचरियं-१०८; कहावली-१०८; सीयाचरियं-१०८. ९. आचार्य श्री हरिभद्रसरि और उनकी समरमयङ्काकहा ११० १०. सोलह दिशाओं सम्बन्धी प्राचीन उल्लेख ११२ ११. आचार्य श्री विजयवल्लभसूरिवर ११४ जन्मस्थान, मात-पितादि-११४; प्रव्रज्याका संकल्प--११४; सुशिष्यत्व-११५; ज्ञानाभ्यास-११६; विहार-११६; आचार्यपदारोहण-११६; शिष्यसमुदाय-११७; क्षमा और कार्यदक्षता-११८; धर्मोपदेशकता-११८; धर्मचर्चाकी लब्धि-११८; संस्थाओंकी स्थापना-११६; उपसंहार-११६. १२. वल्लभ-प्रवचन १२० १३. अभिधानराजेन्द्रकोश और उसके प्रणेता युगपुरुष श्रीराजेन्द्रसूरि १४. श्रीवल्लभगुरुसङ्क्षिप्त चरितस्तुतिः १२६ १५. योगशतक-सम्पादनम् १२७ . ग्रन्थकार:-१२८; ब्रह्मसिद्धान्तसमुच्चयकार:-१२६. १६. प्रबुद्धरौहिणेय-सम्पादनम् १३१ १०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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