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हिंदी तथा संस्कृत लेखो १. शानभाण्डारों पर एक दृष्टिपात
साहित्य प्रदर्शनी, विभाग और उनका अवलोकन-१, तालिका-१, ज्ञानभाण्डारों पर एक दृष्टिपात-३, लेखनविषयकसामग्रीः ताडपत्र और कागज़-८, स्याही-६, रंग-६, लेखनी-१०, मषीभाजन-दावात-१०, ओलिया अथवा फांटिया-१०, जुजबल और प्राकार-११, लिपि-११, लेखक अथवा लहिया-१२, पुस्तकोंके प्रकार-१३, ग्रन्थसंशोधन, उसके साधन तथा चिह्न आदि : साधन-हरताल आदि-१४, तूलिका, बट्टा, धागा-१४, संशोधनके चिह्न और संकेत-१५, ग्रंथसंरक्षणके साधन-१५, ज्ञानभाण्डारोंमें उपलब्ध सामग्री-१७. जैन आगमधर और प्राकृत वाङ्मय जैन आगमधर स्थविर और आचार्य-१६; (१) सुधर्मस्वामी-१६, (२) शय्पंभव-२०, (३) प्रादेशिक आचार्य-२०, (४) पांच सौ आदेशोंके स्थापक-२१, (५) सैन्धान्तिक, कार्मग्रन्थिकादि-२२, (६) भद्रबाहुस्वामी-२२, (७) श्यामाचार्य-२४, (८,६,१०) आर्य सुहस्ति, आर्य समुद्र और आर्य मंगु-२४, (११) पादलिप्ताचार्य-२५, (२) आर्य रक्षित-२६, अनुयोगका पृथक्त्व-२६, (१३) कालिकाचार्य-२७, (१४) गुणधर-२७, (१५) आचार्य धरसेन, पुष्पदन्त व भूतबलि-२७, (१८) आचार्य शिवशर्म-२८, (१६,२०) स्कन्दिलाचार्य व नागार्जुनाचार्य-२८, (२१) स्थविर आर्य गोविन्द-२६, - (२२,२३) देवद्धिगणि व गन्धर्व वादिवेताल शांतिसूरि-२६, (२४) भद्दियायरिय-३५, (२५) दत्तिलायरिय-३५, (२६) गंधहस्ती-३५, (२७-२८) मित्तवायग-खमासमण व साधुरक्षितगणि क्षमाश्रमण-३६, (२६) धम्मगणि खमारामण-३६, (३०) अगस्त्यसिंह ( भाष्यकारोंके पूर्व )-३६, (३१) सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण-३७, (३२) जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण--३७, (३३) कोट्टार्यवादिगणि क्षमाश्रमण-३७, (३४) सिद्धसेनगणि क्षमाश्रमण-३७, (३५) सिद्धसेनगणि-३८, (३६) जिनदासगणि महत्तर-३८, (३७) गोपालिकमहत्तरशिष्य-३८, (३८) जिनभट या जिनभद्र-३८, (३६) हरिभद्रसुरि-३८, (४०) कोट्याचार्य-३६, (४१) वीराचार्ययुगल-४०, (४२) शीलांकाचार्य४०, (४३) वादिवेताल शान्तिसूरि-४०, (४४) द्रोणाचार्य-४०, (४५) अभयदेवसूरि४०, (४६) मलधारी हेमचन्द्रसूरि-४१, (४७) आचार्य मलयगिरि-४२, (४८) श्रीचन्द्रसूरि-४३, (४६) आचार्य क्षेमकीर्ति-४३, बृहद्भाष्यकारादि-४३, अवणिकारादि४३; प्राकृतवाङ्मय : जैन आगम--४४, प्रकीर्णंक-४६, आगमोंकी व्याख्या-४७, नियुक्तियाँ-४७, संग्रहणियाँ-४८, भाष्य-महाभाष्य-४८, चूणि-विशेषचूणि-४६, प्रकरण५०, तार्किक प्रकरण-५०, आगमिक प्रकरण-५०, औपदेशिक प्रकरण-५१, धर्मकथासाहित्य-५१, जैनस्तुति-स्तोत्रादि-५३, व्याकरण व कोश-५४, काव्य और सृभा
षित-५४, अलंकारशास्त्र-५५, नाटक व नाट्यशास्त्र-५५, प्राकृतादि भाषाएं-५८. ३. अंगविजा प्रकीर्णक
ग्रंथका बाह्य स्वरूप-६२, ग्रंथकी भाषा और जैन प्राकृतके विविध प्रयोग-६३, अंग- .
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