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तुमने स्वगृह, स्वजन, स्ववैभव, सब कुछ त्याग जब यौवनअपने पूरे यौवन पर था, और नियंत्रण रहित देह मान ॥ जबकि देखता था संस्कृति के, अणु-अणु में नूतन आकर्षण, तुम महान मानव थे भगवान, युगों युगों तक विश्व न तुमको, भूल सकेगा त्रिशला नन्दन ॥ कर में धवल अहिंसा ध्वज ले, वीतरागता का सम्बल ले। विद्रोही सत्याग्रह धर तुम, जब ममता सीमा से निकले ॥ तब रवि शशि भी झिझक थे उठे, कवि मानव की कहे बात क्या? खेल उठा था भू प्राङ्गण में, एक निराला ही परिवर्तन ! तुम महान् मानव थे भगवान-युगों युगों तक विश्व न तुमको, भूल सकेगा त्रिशला नन्दन ॥
-'तन्मय बुखारिया भावों के फूल खिले हे वीर तुम्हारे चरणों में भावों के फूल खिले
जन जन के हृदय मिले। तुमने हर प्राणी को दी, जीवन की कोमल अभिलाषा । ममता के स्वर में समझादी, मानव जीवन की परिभाषा ।
तुम गीत बने संगीत बने, हर मन के मीत मिले, प्राणों में ज्योति जले । हे वीर तुम्हारे चरणों में,
भावों के सुमन खिले ॥ देव ! तुम्हें पा धन्य हुई थी, धरती माँ और त्रिसला रानी। विपुलाचल पर्वत से छलकी, हर मन में करुणा कल्याणी॥
तेरे पावन पग चिन्हों पर साँसों की राह मिले, प्राणों में प्यार पले । हे वीर तुम्हारे चरणों में, भावों के फूल खिले ॥
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