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________________ (११) लखनऊ में भगवान महावीर पार्क एवं स्मारक का निर्माण, जिसमें एक आडिटोरियम, एक सार्वजनिक पुस्तकालय, अध्यात्म विद्या अध्ययन कक्ष, योग साधना कक्ष एवं शोध संस्थान का भवन हो (पार्क की भूमि शासन द्वारा निःशुल्क उपलब्ध कराई जाय । स्मारक के रखरखाव आदि पर होने वाले आवर्तक व्यय के वहन की व्यवस्था समिति राजकीय अनुदान एवं अन्य स्त्रों से करेगी)। (१२) प्रदेश के अन्य स्थानों में महाबीर स्मारकों के लिये आंशिक अनुदान (अनुदान केवल वहीं दिया जायगा जहां की जनता कम से कम आधा निर्माण व्यय तथा पूरा रखरखाव व्यय वहन करने की व्यवस्था कर ले)। उपरोक्त कार्यक्रमों के लिये जितनी धनराशि राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत की जाय, वह इस समिति को अनुदान के रूप में स्वीकृत कर दी जाय । ७. दि० २ अप्रैल, १९७४ की बैठक में अपने अध्यक्षीय भाषण में माननीय मुख्य मन्त्री जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति एक ही चीज है। काल ने उसकी शकल व सूरत अनेक कर दी है। देश की संस्कृति यदि अपरिवर्तन शील रहे तो वह मर जाती है । भारतीय संस्कृति में विचारों की कितनी ही विशेष धाराएँ हैं। उनमें से एक बहुत पवित्र विशिष्ट तथा अत्यन्त तेजस्वी विचारधारा भगवान महावीर ने भारतीय संस्कृति को दी है । भारतीय संस्कृति समुद्र है अनेक विचारों का, इस समुद्र में आकर गंगा जमुना अपना मीठापन खो देती हैं और नाला अपनी कड़वाहट, अपनी खराबी खो देता है, यह उसकी एक विशेषता है। हर धारा का स्मरण बार-बार करना भारत के लिए अति आवश्यक है । हमारी पाठ्य पुस्तकों में सांस्कृतिक झलक ही नहीं वरन् समाज, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर बातें होनी चाहिए । हमारे बुजुर्ग चाहे वह कोई सन्त हों, चाहे कवि हों, धर्म प्रवर्तक हों या जिसने दर्शन को नई दृष्टि दी हो, चाहे वह वल्लभाचार्य हों, रामानन्द हों, चाहे कोई आचार्य हों, यह सभी भारतीय संस्कृति की अनेक धाराएँ हैं । उन्होंने समय-समय पर इस संस्कृति को बल प्रदान किया है और आगे को बढ़ाया है। लेकिन अगर समुद्र में मिलने के बजाय कोई धारा अलग रहना चाहे तो वह सूख कर रह जाती है, उसको बैठा देना चाहिए। इस समुद्र का जहां साथ नहीं, वह भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं। हमें इसको देखना और समझना चाहिए । यदि पाठ्य पुस्तकों में कोई गलत बयानी द्रष्टि में आती है तो पाठ्य पुस्तक अधिकारी को सुझाव भेजकर उसे ठीक कराना चाहिए । इस जयन्ती के अवसर पर दबी चीजें ऊपर लाने के लिए तथा भूली चीजों की याद दिलाने के लिए विश्वविद्यालयों में व्याख्यान आयोजित कराए जाने चाहिए। विचारों की क्रान्ति तथा शोध कार्यों के लिए विश्वविद्यालयों का सहारा लिया जाना चाहिए। ८. दि० २ अप्रैल १९७५ की बैठक में लिए गये निर्णयों के सुचारुरूप से कार्यान्वयन के लिए निम्नलिखित उपसमितियों का गठन किया गया: (१) कार्यकारिणी उपसमिति अध्यक्ष--माननीय डा० रामजीलाल सहायक, शिक्षा मन्त्री उपाध्यक्ष-श्री लक्ष्मी रमण आचार्य सचिव–सचिव, राष्ट्रीय एकीकरण विभाग उप सचिव-श्री अजित प्रसाद जैन सदस्य: १. डा. ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ २. श्री सुकुमार चन्द जैन, मेरठ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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