SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तर प्रदेश में तीर्थंकर महावीर -डा० शशिकान्त हम आपको आज से २५०० वर्ष पहले के उत्तर प्रदेश में ले जा रहे हैं। वर्तमान अवध के क्षेत्र में उस समय कोसल जनपद था। वहां राजा प्रसेनजित राज्य करता था। उसने राजतन्त्र को सुदृढ़ किया और कोसल को एक अत्यन्त समृद्ध एवं शक्तिशाली राज्य बना लिया। काशी जनपद पर विजय प्राप्त कर दक्षिण-पूर्व में स्थित कोलियों, बलियों और शाक्यों की जनतान्त्रिक सत्ताओं को समाप्त कर राप्ती के पश्चिम और गंगा के, उत्तर सम्पूर्ण विशाल क्षेत्र में प्रसेनजित का राजतान्त्रिक एकाधिकार स्थापित हो चुका था। प्रसेनजित वेदनिष्ठ ब्राह्मणों का आश्रयदाता था और वे उसके एकाधिकार के पोषक थे। उसकी राजधानी श्रावस्ती राप्ती नदी के पश्चिमी तट पर हिमालय की तलहटी में एक सुरम्य महानगर था। वहाँ सेठ अनाथपिडिक और सेठ मृगार जैसे धनवान रहते थे जिनके पास धन की थाह नहीं थी। श्रावस्ती के समीप ही नंगला सनिवेश था। यह वेदमिष्ठ ब्राह्मणों का केन्द्र था। ब्राह्मण-श्रेष्ठ अपने सैकड़ों अन्तेवासी ब्रह्मचारियों को वेदाभ्यास कराते थे और यज्ञ-कर्म में लीन रहते थे। सन्निवेश के बाहर यज्ञ-पशूओं का हाट था जिसमें वेद-विहित पंच-पशु बंधे होते थे और यजमान दाम चुकाकर अपने होतृ के लिए इन मूक पशुओं को यज्ञबलि हेतु ले जाते थे। (पशुओं, बकरों, मेढ़ों की चीत्कार और बन्धन-मुक्त होने पर धमा-चौकड़ी) (ब्राह्मणों एवं अन्तेवासियों द्वारा गायत्री मंत्र का पाठओं भूर्भुवा स्वाहा । तत्सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि ध्योयोनः प्रचोदयात् ।) यजमान बिना यज्ञ-बलि के चले आ रहे हैं । अन्तेवासी चिन्तित हैं। हविर्भग्नि मन्द पढ़ती जा रही है। विप्र-श्रेष्ठ पौष्करसादि अपने आसन से मन्त्र-पाठ जारी रखने का संकेत करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy