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वाराणसी जिला
प्रो० खुशाल चन्द एम० ए० 'साहित्याचार्य-२८ वर्ष का यह युवक सन् ४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में तूफान की तरह प्रसिद्धि में आया और आते ही प्रान्तीय नेताओं की अगली पंक्ति में जा पहंचा। कांग्रेस के सत्याग्रह आन्दोलन के मुख्य संचालक और संयुक्त प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी के रूप में प्रान्त की उल्लेखनीय राष्ट्रीय सेवा की। जुलाई सन् ४१ में पकड़े गये और दो माह नजरबन्द रहे तथा चार माह की सजा भुगती। सन् ४२ के आन्दोलन में नेताओं की गिरफ्तारी के समय भी गिरफ्तार कर लिये गये और कई वर्ष तक सरकार के मेहमान रहे । यहां से निकलने के बाद भी आप कांग्रेस में सक्रिय कार्य करते आ रहे हैं ।
श्री अमोलक चन्द्र वकील-सन् ३० का द्वितीय स्वतन्त्रता संग्राम प्रारम्भ होते ही इस युवक वकील ने सब ही राजनैतिक मुकदमे मुफ्त लड़े। फलतः नौकरशाही की नजरों में खटके । जेल में हए अत्याचारों के भण्डाफोड़ को लेकर सरकार ने इन पर मुकदमा चलाया और ५००) अर्थदण्ड दिया। सन् ३७ में श्री गोविन्द बल्लभ पन्त की अध्यक्षता में हुए जिला राजनैतिक सम्मेलन के प्रधान मंत्री हुए। इसके बाद सन् ३८-३९ में आप युक्त प्रान्त के शिक्षामंत्री बा० सम्पूर्णानन्द जी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे। सन् १९४२ में आपने व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और ६ मास का कारावास तथा १०० रुपया अर्थ दण्ड भोगा।
अगस्त आंदोलन और स्याद्वाद विद्यालय, काशी-सन् ४२ के अगस्त आन्दोलन में स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी, जो अपने प्रकार का एक प्रमुख जैन विद्यालय है, के छात्रों ने प्रशंसनीय भूमिका अदा की, और जलसे, जुलूस, तोड़फोड़, हड़ताल, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार--सभी प्रवृत्तियों में उत्साह के साथ सक्रिय भाग लिया। फलस्वरूप विद्यालय पर खुफिया पुलिस का कड़ा पहरा बैठ गया। इन छात्रों में प्रमुख थे शीतल प्रसाद (बड़ागाँव, जि० मेरठ), घनश्यामदास, रतन चन्द्र पहाड़ी, धन्य कुमार, हरीन्द्र भूषण, नाभि नन्दन, बालचन्द, दयाचन्द्र, सुगन चन्द, गुलाब चन्द, अमृत लाल आदि जिनमें से अनेकों ने पुलिस द्वारा दी गई कड़ी यातनाएं तथा कारावास आदि भुगते ।
लखनऊ जिला
लखनऊ नगर में श्री जिनेन्द्रचन्द्र कागजी कुछ समय तक कांग्रेस के कार्यकर्ता और खादी के प्रचारक रहे हैं।
ऊपर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों, नगरों, कस्बों या ग्रामों के निवासी जिन राष्ट्रसेवी देशभक्त स्वतन्त्रता सेनानियों का सांकेतिक परिचय दिया गया है, उनके अतिरिक्त भी प्रदेश के अन्य सहस्त्रों जैनों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में उक्त संग्राम में भाग लिया, स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए विविध त्याग किये, कष्ट और कठिनाइयाँ सहीं। जो विशेष उल्लेखनीय थे और जिनके विषय में कुछ निश्चित रूप से ज्ञात हो सका, उन्हीं का उल्लेख ऊपर किया गया है।
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