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परकोटे के भीतर दो मढियां हैं, जिनमें से एक के नीचे स्थित भौंहरे में पत्थर की वेदी पर छः पद्मासनस्थ तीर्थंकर प्रतिमाएँ अढ़ाई से तीन फुट ऊँची विराजमान हैं—दो शीतलनाथ की हैं और एक-एक ऋषभनाथ, सम्भवनाथ, सुमतिनाथ और पार्श्वनाथ की हैं। एक प्रतिमा १२४२ ई० की और शेष १२८८ ई० की प्रतिष्ठित हैं । प्रतिमा सब मनोज्ञ हैं, और इस स्थान की अतिशय क्षेत्र के रूप में मान्यता है । अगहन के प्रारम्भ में ८ दिन का मेला होता | स्थान रमणीक है ।
बालाबेहट
ललितपुर जिले में ललितपुर से लगभग ४० कि० मी० पर बालाबेहट नाम का गांव है, जहां एक प्राचीन चन्देल कालीन शिखरबन्द मन्दिर में तीन वेदी हैं, जिनमें से मुख्य वेदी में दो फुट ऊँची कृष्ण पाषाण की अतिमनोज्ञ पद्मासनस्थ पार्श्व प्रतिमा है जो देवातिशय के लिए प्रसिद्ध है । पासपड़ोस की ग्रामीण जनता इन शामलिया पार्श्व नाथ की दुहाई देती है । एक धर्मशाला भी यहां है और फाल्गुनमास में रथोत्सव एवं मेला होता है । अन्य दो वेदियों में पाषाण एवं धातुनिर्मित कई-कई प्रतिमाएँ विराजमान हैं ।
दुधई
ललितपुर जिले में बालाबेहट के पास ही दुधई नाम का प्राचीन स्थान है जहां अनेक प्राचीन जैन कलावशेष बिखरे पड़े हैं जो पूर्ण मध्यकालीन प्रतीत हुए हैं। इनमें विशेष उल्लेखनीय एक कलापूर्ण विशाल प्रस्तरांकन है जो २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ की बारात के जलूस का माना जाता है ।
सिरौनजी
ललितपुर जिले में जखौरा रेलस्टेशन से १२ मील की दूरी पर स्थित सिरीन ग्राम में एक पुराना शिखरबन्द जैन मन्दिर है | ग्राम से थोड़ी दूर पर ५ प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें तीन एक ही खण्डहर के भीतर स्थित हैं । इनमें से बड़े मन्दिर की वेदी में कृष्ण पाषाण की दो-दो फुट ऊँची शान्तिनाथ की तीन मनोज्ञ प्रतिमाएं हैं । दूसरे मन्दिर की वेदी में वैसी ही दो प्रतिमाएँ हैं तथा वेदी के आगे दोनों कोनों पर दो इन्द्र खड़े हैं। तीसरा मन्दिर है तो छोटा किन्तु उसके भीतर दीवार पर भगवान शान्तिनाथ की १६ फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा उत्कीर्ण है । इस प्रतिमा के अगल-बगल तीन-तीन फुट ऊंची दो प्रतिमाएँ तथा उनके ऊपर दो-दो फूटी ऊँची दो प्रतिमाएँ उत्कीर्णं । चौथा मन्दिर गुम्बजदार है, वेदी में ४ फुट ऊंची प्रतिमा विराजमान है तथा चारों ओर दीवारों पर अनेक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं | पांचों मन्दिर में भीतर वेदी में तो दो प्रतिमाएँ हैं, किन्तु बाहर आंगन में लगभग १०० खण्डित मूर्तियां छः-छः फुट ऊँची तथा अन्य अनेक ४ या ५ फुट ऊँची पड़ी हैं। आंगन के चबूतरे पर सं० १००८ (सन् ९५१ ई० ) का लेख अंकित है । यह स्थान भी अतिशयक्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है, कलाधाम तो है ही । फाल्गुन मास में यहां वार्षिक रथोत्सव होता है ।
ललितपुर
स्वयं ललितपुर शहर में, बस्ती से लगभग १ मील पर एक भारी ऊँचेगढ़ के भीतर सात मन्दिर व धर्मशाला हैं । यह स्थान क्षेत्रपाल के नाम से प्रसिद्ध है, और आस-पास में इसकी बड़ी मान्यता है । मन्दिर आदि सुन्दर हैं । क्षेत्रपाल मन्दिर ११वीं - १२वीं शती का अनुमान किया जाता है ।
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