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________________ [ ४९ मध्यमापावा या अपापापुरी मानने लगे हैं । अतएव उक्त संठियावडीह को नवीन नाम पावानगर दे दिया गया है । लगभग २६ वर्ष पूर्व वहां एक विद्यालय भी 'पावानगर महावीर इंटर कालेज' नाम से स्थापित हुआ था, जो इस वर्ष श्री महावीर निर्वाण समिति उ० प्र० के प्रयत्न से डिग्री कालेज हो गया है । एक जिनालय और धर्मशाला बनाने का भी प्रयत्न किया जा रहा है, श्री पावानगर निर्वाण क्षेत्र समिति नाम की एक कमिटी भी गठित हो गई है। यह स्थान गोरखपुर से ४५ मील, देवरिया से ३५ मील, कसया से १० मी०, कुशीनगर से १२ मील और तमकही रोड से १२ मील पर स्थित है। यों जैनों में चिर प्रचलित लोक विश्वास के अनुसार भ० महावीर की निर्वाणभूमि बिहार राज्य के पटना जिले में बिहार शरीफ रेल स्टेशन से नातिदूर स्थित पावापुर है जहां कई प्राचीन एवं अर्वाचीन भव्य और विशाल जिन मन्दिर, धर्मशालाएँ आदि हैं तथा निर्वाण का स्मा जल-मन्दिर है। अतएव देवरिया जिले के पावानगर का महावीर की निर्वाणभमि होना निर्विवाद नहीं है, तथापि यह स्थान भी प्राचीन प्रतीत होता है, यहां अनेक पुराने टीले भी हैं जिनके पुरातात्त्विक उत्खनन से, सम्भव है, कुछ तथ्य प्रकाश में आयें जो उक्त विवाद के समाधान में सहायक हों। (ग) तपोभूमियां एवं सिद्धभूमियां इस वर्ग में उत्तर प्रदेश में स्थित प्रयाग, गढ़वाल-हिमालय के श्रीनगर तथा नर, नारायण, बद्रीनाथ, आदि पर्वत शिखर, पभोसा, हस्तिनापुर, पारसनाथ किला, शौरिपुर और मथुरा हैं। इनमें से प्रयाग, पमोसा, हस्तिनापुर और शौरिपुर का परिचय ऊपर दिया जा चुका है। गढ़वाल-हिमालय युगादिजिन भगवान ऋषभदेव ने अपने मुनि जीवन में मध्य-हिमालय के पार्वतीय प्रदेशों में तपश्चरण किया और केवल ज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त वहां विहार करके धर्मोपदेश भी दिया था, ऐसा आदिपुरण आदि प्राचीन ग्रन्थों से प्रगट होता है। गढ़वाल का परमधाम बद्रीनाथ जिस पर्वतशिखर पर स्थित है, उसके एक ओर 'नर' पर्वत है और दूसरी ओर 'नारायण' पर्वत है-नरपर्वत भगवान ऋषभदेव की तपोभूमि है और नारायण पर्वत देशना भूमि । वह नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा हो गये थे, इसी तथ्य के प्रतीक रूप में उक्त पर्नतों के ये नाम प्रसिद्ध हुए लगते हैं। स्वयं बद्रीनाथ की मूर्ति को जैनीजन तीर्थंकर प्रतिमा ही जानते-मानते रहे हैं और दर्शनार्थ उस धाम की यात्रा भी करते रहे हैं। उत्तरी हिमशृंखला को पार करके पर्वतराज कैलास, अपरनाम अष्टापद, के शिखर से ही उन ऋषभलांछन, जटाधारी, महादेव ऋषभनाथ ने निर्वाण, सिद्धत्व एवं शिवत्व प्राप्त किया था। अन्य अनेक मुनियों ने भी भगवान के साथ मुक्ति लाभ की थी। पौड़ीगढ़वाल की राजधानी श्रीनगर में भगवान का समवसरण आया लगता है। वहाँ मध्यकाल में अलकनंदा के तट पर एक भव्य आदिनाथ मन्दिर विद्यमान था, जो १८९२ ई० की गौना की बाढ़ में ध्वस्त हो गया। वर्तमान शती के प्रारम्भ में नवीन मन्दिर बना। वह भी भव्य है और उसमें पुराने मन्दिर की, बाढ़ से बची, कुछ अति प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं। इसमें सन्देह नहीं कि मध्य हिमालय के ये पानतीय प्रदेश जैन मुनियों की बहुधा तपोभूमि रहे हैं। पारसनाथ किला बिजनौर जिले के नगीना नामक कस्बे के उत्तर-पूर्व ९ मील पर बढ़ापुर नाम का छोटा सा कस्बा है. जिसके ३ मील पूर्व दिशा में किसी अति प्राचीन बस्ती के खण्डहरों से युक्त कई टीले हैं। ये टीले दो डेढ़ वर्ग मील Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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