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________________ ४६ ] नगरी उजाड़ प्रायः हो गई, किन्तु गौणरूप में बनी भी रही और तीर्थंकर की गर्भ-जन्मभूमि के रूप में पूजी भी जाती रही। नेमिनाथ के जन्म से कुछ पूर्व ही शौरिपुर के निकटवर्ती गंधमादन पर्वत पर मुनिराज सुप्रतिष्ठित ने केवलज्ञान प्राप्त किया था और उन्हीं के निकट शौरिपुर नरेश अन्धकवृष्णि और मथुरा नरेश भोजकवृष्णि ने मुनिदीक्षा ली थी। शौरिपुर में ही अमलकंठपुर नरेश निष्ठसेन के पुत्र राजकुमार धन्य ने जब भ० नेमिनाथ से मुनिदीक्षा लेकर विहार किया था तो वह एक शिकारी राजा के बाणों से बिद्ध होकर अन्तकृत केवलि हए थे। मुनिराज अलसत्कुमार ने भी इसी नगर में केवलज्ञान एवं मोक्ष प्राप्त किया था। भ० महावीर के समय में इसी नगर में यम नामक मुनि अन्तकृति केवलि हुये थे। वसुदेव की प्रथम पत्नी और बलराम की माता रोहिणी के सतीत्व की परीक्षा भी इसी शौरिपुर में हुई थी। मध्ययुग के प्रारंभ में इस नगर का सम्बन्ध मुनि लोकचन्द्र से रहा, और कालान्तर में यहाँ जो भट्टारकीय पट्ट स्थापित हआ उसमें १६वीं शती ई० के प्रारम्भ से लेकर २०वीं शती के प्रारम्भ पर्यन्त क्रमशः ललितकीर्ति, धर्मकीति, शील भूषण, ज्ञानभूषण, जगत्भूषण, विश्वभूषण, देवेन्द्रभूषण, सुरेन्द्रभूषण, लक्ष्मीभूषण, जिनेन्द्रभूषण, महेन्द्रभूषण, राजेन्द्रभूषण, हरेन्द्रभूषण और यति रामपाल नाम के भट्टारक हुए, जिन्होंने शौरिपुर, बटेश्वर,हथिकान्त तथा आसपास के अन्य नगरों एवं ग्रामों में पचासों मन्दिर बनवाये, सैकड़ों प्रतिष्ठाएं कराईं, स्वयं तथा अपने शिष्यों एवं आश्रित विद्वानों से विपुल साहित्य की रचना कराई, और अपनी सिद्धियों एवं चमत्कारों से भी जनता को प्रभावित किया। (ख) अन्य कल्याणक क्षेत्र उ० प्र० में स्थित तीर्थंकरों की जन्मभूमियों के अतिरिक्त अन्य कल्याणक क्षेत्रों में प्रयाग, पभोसा, संकिसा, अहिच्छत्रा और पावानगर हैं। प्रयाग इलाहाबाद नगर का प्राचीन भाग, जो त्रिवेणी-संगम के निकट प्रयाग नाम से प्रसिद्ध है, भारतवर्ष का महान तीर्थ स्थान रहता आया है। जैन साहित्य में भी उसे एक तीर्थक्षेत्र माना गया है, और वहां उसके अपरनाम प्रजाग, पुरिमताल एवं पूर्वतालपुर प्राप्त होते हैं । इस नगर में आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के एक छोटे पुत्र वृषभसेन का राज्य था, जो बाद में उनका गणधर भी हुआ । यही सिद्धार्थ नामक वन में भगवान ऋषभदेव ने जिनदीक्षा ली थी और उसके उपलक्ष में प्रजा ने उनकी पूजा की थी, इसीलिए वह स्थान प्रजाग या प्रयाग नाम से प्रसिद्ध हआ। एवमुक्त्वा प्रजा यत्र प्रजापतिमपूजयन । प्रदेशः स प्रजागाख्यो यतः पूजार्थयोगतः ॥ -हरिवंश, IX, ९६ आगे चलकर इसी पूर्वतालपुर, पुरिमताल या प्रयाग में, संगम के निकट वटवृक्ष के नीचे उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ था, जिसके कारण यह वृक्ष लोक में 'अक्षयवट' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। और इसी प्रयाग की पवित्र भूमि पर आदि तीर्थंकर का सर्वप्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन हुआ था। इसी स्थान में अण्णिकापुन को गंगा पार करते समय केवल ज्ञान हुआ बताया जाता है। पभोसा पभोसा, पफोसा या प्रभासगिरि इलाहाबाद जिले में प्राचीन महानगरी कौशाम्बी के लगभग ४ कि० मी० उत्तर-पश्चिम में स्थित है और जैनों का परम पवित्र तीर्थ है। इस पहाड़ी पर कौशाम्बी में जन्मे छठे तीर्थंकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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