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________________ ४२ ] ग्रेट ब्रिटेन १९०८ ई. के लगभग मांचेस्टर में शाकाहारी आन्दोलन प्रारम्भ हआ। यद्यपि प्रारम्भिक आधार धार्मिक आचारिक ही रहे, परन्तु कुछ समय पश्चात् शाकाहारी आन्दोलन के समर्थकों ने इसे स्वास्थ्य और अर्थ सम्बन्धी आधारों पर विकास दिया। इसका सारा श्रेय १८०९ में स्थापित बाइबल क्रिश्चियन चर्च को दिया हैं। १८४७ ई० और १८८८ ई० से शाकाहारी आन्दोलन की दो संस्थाएं अपने-अपने ढंग से कार्य कर रही हैं तथा ७ जनवरी १८८८ ई० को वेजिटेरियन पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित हुआ था, जिसकी घोषणा थी - "इस पत्र का नाम ही खानपान के आदर्श की घोषणा का सूचक है पर इसका क्षेत्र मान पथ्याचार के सुधार के सिद्धांतों की घोषणा तक ही सीमिति नहीं रहेगा, यह उन आवश्यक स्थितियों का भी सृजन करता रहेगा, जिनसे आदर्श की प्राप्ति हो, पहले शारीरिक फिर मानसिक और तब आध्यात्मिक जीवन की।" यह अपने लेखों, गम्भीर विचारों, रोचक वार्ताओं के माध्यम से शाकाहार का प्रचार करता रहा है। ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध दैनिक समाचारपत्र "मिरर" ने शाकाहार के आन्दोलन पर निम्न शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी "कुलीन परिवारों के सदस्यों में शाकाहारी सिद्धांत इस तरह लोकप्रिय हो गया है कि कोई भी शानदार भोजन अलग भोजन सूची "फेड डिसेज" के बिना पूरा नहीं होता।" --जेम्स हो स्काट लैण्ड स्काटिश शाकाहारी संघ की स्थापना १८९२ में हुई । अरनाल्ड एफ हिल्स ने इसमें बहुत सहयोग दिया, और १८९७ में जान पी० एलन ने एच० एस० बाथगेट व दुगाल्ड सेम्पल के सहयोग से इसमें अद्वितीय अभि वृद्धि की। -जेम्स हो आयरलैण्ड यहां शाकाहार प्रचार का कार्य बहुत जटिल था। ऐसे अधिकारी जो समय दे सकें, अनुभवी व उत्साही हों, मिल पाना मुश्किल था, किन्तु अब यहां यह आन्दोलन जोर पकड़ चुका है । जेम्स दम्पति द्वारा भारत में डा. एनीबिसेन्ट के साथ १९१५ में कार्य करने के पूर्व डबलिन में इनकी संघर्षमय शुरुआत की गई व बेलफास्ट में इसके प्रसार का श्रेय विलियम डा० काजिन्स को दिया जाता है। अब तो ब्रिटेन में शाकाहारी प्रचार आधुनिकतम साधनों द्वारा किया जाता है, जिनमें टी. वी. भी सम्मिलित है । लोगों में इसके बारे में जानने की उत्सुकता है व इस बाबत प्रयोग करने की तत्परता भी है। कई रेस्तरां व आहार संस्थान खुल चुके हैं। इसके लिए विभिन्न समितियां कार्यरत हैं। -जेम्स हो जापान शाकाहारी सिद्धांत अप्राकृत हो गई सभ्यता का उपचार है । 'जीने के लिए संघर्ष' मुक्तउद्योगी समाज का नारा रहा है और सुदूर पूर्व में पिछले अस्सी बर्षों से मुक्त उद्योग के लिए जापान अगली पांत में रहा है, विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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