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________________ [ ३५ संसार के महान गणितज्ञ और भौतिक विद् आइंस्टीन "वेजिटेरियन वाच टावर" के सम्पादक को प्रेषित २७ दिसम्बर ३० के अपने पत्र में लिखते हैं-"हालांकि वाह्य परिस्थितियां शाकाहारी पथ्य के कठोर निर्वाह करने में मुझे रोकती रहीं, मैं लम्बे समय से सैद्धान्तिक रूप से आपके उद्देश्य का अनुचर रहा हूँ। आपके सौन्दर्य शास्त्रीय और नैतिक उद्देश्यों से सहमत होते हुए भी मेरा विचार यह है कि शाकाहारी जीवन पद्धति मनुष्य स्वभाव पर अपने पूर्ण शारीरिक प्रभाव द्वारा सर्वाधिक लाभप्रद रूप में मानव समुदाय को प्रभावित करेगी।" -अल्बर्ट आईन्स्टीन अल्पाहारी कामगार, प्राणी चीर-फाड़ विरोधी, शान्ति के समर्थक, माताएँ और संसार के अच्छे अभिप्राय वाले लाखों कार्यकर्ता सभी शून्य पर आघात करते हुए अपनी शक्ति का अपव्यय कर रहे हैं जब तक कि वे उस बात की जड़ को लक्ष्य न बना लें जो आज हमारे संसार को किसी भी अन्य चीज की अपेक्षा मांस के उपयोग से अधिक दूषित कर रही हैं। ये सभी बुराइयां मांसाहारी की शरीर-प्रक्रिया में विद्यमान जहर से पोषित होती हैं और उनके द्वारा प्रोत्साहित की जाती हैं जो इन बुराईयों को व्यावसायिक रूप देते हैं। शराबी अपने भीतर की लिप्सा द्वारा ही शराबी बनाया जाता है। कोई कह सकता है..."नहीं, वह साथियों द्वारा शराबी बनाया गया है।" उसके अधिक ऊँचे आदर्श जो थे, वह तथ्य रहता है, उसके अपने साथी उसे प्रभावित करने में असमर्थ रहेंगे। वह अपनी मूर्खता में मद्यसार और उत्तेजक पदार्थों का व्यवसाय करने वालों द्वारा ही प्रोत्साहित किया जाता है, जिनका वह उपयोग करता है। इच्छा-शक्ति से उसकी लिप्सा वश में करनी पड़ती है, जो पशु-विष लेने से शरीर-प्रक्रिया में उत्पन्न हुई और खुलेपन और उस जैसे साथियों के कारण ही विस्तृत हुई। मगर यह भोजन उसकी इच्छा-शक्ति छीन लेता है। ये विष लेते रहें और ये प्रलोभन बने रहते हैं। तब ये मूर्खता और नुकसानप्रद रूप में प्रकट होते हैं जैसे कि वे होते हैं जब तक कि प्राण-नाशक कारण दूर नहीं किया जाता। कम से कम नब्बे प्रतिशत घटनाओं में प्रार्थना, आंसू और भय का किसी भी तरह का कोई उपयोग नहीं होता है और शेष दस प्रतिशत में नौ पर ही अस्थाई असर होता है। -२० एल० प्रेट (सम्पारकर अमेरिकन वेजिटेरियन) दस आदमियों के निर्वाह योग्य मांस की प्राप्ति के लिए पशुओं को पालने और उन्हें हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए जितनी जमीन में यदि मटर, जौ, बाजरा, अनाज आदि की खेती की जाये तो सौ आदमियों के निर्वाह योग्य भोजन प्राप्त हो सकता है। -हमबोल्ट हमारी नस्ल (मनुष्य-जाति) के लिए मांसाहार अनुपयुक्त है। अगर हम पशुओं से अपने को ऊँचा मानते हैं, तो फिर उनकी नकल करने में भूल करते हैं। यह बात अनुभव-सिद्ध है कि जिन्हें आत्म-संयम इष्ट हो उनके लिए मांसाहार अनुपयुक्त है-नश्वर शरीर को सजाने के लिए, उसकी उम्र बढ़ाने के लिए हम अनेक प्राणियों की बलि देते हैं। उससे शरीर और आत्मा दोनों का हनन होता है। धर्म मुझे मांस अथवा अण्डे खाने की आज्ञा नहीं देता। - सही या गलत हो, पर मेरा धार्मिक विश्वास यही है कि मनुष्य मांस, अण्डा व अन्य प्रकार के मांस न खायें। यहां तक कि मनुष्य को अपने को जीवित रखने के लिये भी एक हद से ज्यादा गैर जुम्मेदारी के साधन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जीवन को सुरक्षित रखने के लिए भी निकृष्ट उपायों का अवलम्बन नहीं करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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