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________________ चना भी दालो मे बहुत उत्तम है। इसके लिए कहा गया है कि खाए चना, रहे बना । चने में १७°/ प्रोटीन है, ६०% कार्बोज, लोहा और चूना भी प्राप्त होता है । चने में एक गुण और है कि वह रक्त में कोलेस्ट्रौल का अंश कम करता है । कोलेस्ट्रोल रक्त में अधिक होने से हृदय रोग की संभावना अधिक रहती है। मानव दूध बच्चे के लिए ६ माह की उम्र तक पर्याप्त रहता है, उसके बाद कुछ और भोजन बच्चे को देना चाहिए। गाय के दूध से सब पौष्टिक तत्त्व प्राप्त हो जाते हैं, केवल विटामिन 'सी' और लोहा नहीं प्राप्त होता । प्रोटीन करीब ३०/ अच्छी किस्म का मिलता है, वसा ४०, चूना, फासफोरस और विटामिन 'ए' और 'डी' मिलते हैं। दूध से बने पदार्थ-दही, खोआ, पनीर और मट्ठा भी पौष्टिक होते हैं। आल आजकल आलू का बड़ा जोर है । आलू से २२% कार्बोज प्राप्त होता है, कुछ मात्रा में विटामिन 'सी' भी प्राप्त होता है । अगर किसी समय अनाज की कमी हो तो केवल आलू पर ही निर्वाह हो सकता है । अकाल की स्थिति में आल अनाज का काम करता है। आलू को कई प्रकार से बना सकते हैं इसलिए इसको खाने से कभी तबियत नहीं ऊबती । चीनी और गुड़ चीनी तो शत प्रतिशत कार्बोज है और ऊर्जा प्रदान करती है । गुड़ में ६५% कार्बोज है और कुछ मात्रा में लोहा भी मिलता है जो कि शरीर में खून बनाने के लिए आवश्यक है। चीनी का ज्यादा इस्तेमाल दाँतो के लिए नुकसानदेह है। देशी घी और अन्य तेल घी के द्वारा वसा में घ लनशील विटामिन प्राप्त होते हैं जैसे 'ए' और 'डी'। शरीर की वसा की दैनिक आवश्यकता ५० ग्राम है। इसमें से १/३ तेलों से प्राप्त होना चाहिए जैसे मंगफली का तेल, तिल्ली का तेल, सरसो का तेल इत्यादि । चिकनाई का भोजन में बड़ा महत्त्व है। इसके कारण भोजन में स्वाद आता है। परन्तु साथ ही साथ यह भी ध्यान रखा जाए कि घी या तेल को आवश्यकतानुसार मात्रा में ही कढ़ाई में डाले, ढ्ढेल उतरी हुई चिकनाई इस्तेमाल करने से उसके पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। वसा दो प्रकार के हैं, एक जो कि साधारण तापक्रम पर ठोस रहते हैं वह संतृप्त कहलाते हैं, जैसे देशी घी, वनस्पति घी और नारियल का तेल । दूसरे जो कि साधारण तापक्रम पर तरल रहते हैं, वह असंतृप्त कहलाते हैं जैसे तिल्ली का तेल, मंगफली का तेल, सरसों का तेल, बिनौले का तेल, कुसुम्भ का तेल इत्यादि। संतृप्त वसा अधिक खाने से हृदय रोग की संभावना अधिक रहती है, इसलिए अधिक घी नही खाना चाहिए। असंतृप्त वसा अधिक इस्तेमाल करे, उससे आवश्यक वसा अम्ल भी प्राप्त होते हैं जो कि त्वचा के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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