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________________ एकमत से यह प्रतिपादन करते हैं कि भगवान महावीर का निर्वाण विक्रम संवत् के प्रवर्तन से ४७० वर्ष पूर्व हुआ था ।38 इनमें से प्रथम आधार को छोड़कर शेष सब महावीरोत्तर काल की राज्यकाल गणना प्राय: अभिन्न रूप से देते हुए अन्त में यह कथन करते हैं कि उज्जयिनी में चतुर्वर्षीय शकशासन के उपरान्त महावीर निर्वाण वर्ष ४७० में विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था। कई जैन लेखकों ने तो स्वयं अपने समय की सूचना देते हुए यह सुस्पष्ट कर दिया कि जिस विक्रम संवत् का प्रचलन है और जिसका वह स्वयं प्रयोग कर रहें हैं वह वही है जिसका प्रारम्भ महावीर निर्वाण के ४७० वर्ष पश्चात हुआ था। 39 और क्योंकि इस विषय में कोइ सन्देह - - 38-- सत्तरि चन्दुसदजुत्तोतिणकाला विक्कमो हवईजम्मो-नंदिसंघ की प्रा० पट्टावली का विक्रमप्रबन्ध, जैन सिध्दान्त भास्कर, I, ४, पृ. ७५ तद्राज्यंतु श्री वीरात सप्तति वर्षशतचतुष्टये संजातम्-तपागच्छ पट्टावली (षटखंडागम, I, 1, i, पृ० ३३--प्रस्तावना में उद्धृत) इतः श्री विक्रमादित्यः शास्त्यवन्ती नराधिपः । अनुण पृथिवीकुर्वन प्रवर्तयति वत्सरम् ॥--प्रभावक चरित्र विक्कमरंज्जारंभो पुरओ सिरिवीर णिब्बुइ भणिया। सुन्न-मुणि-बेयजुत्तो विक्कमकालाउजिणकालो।।-विचारश्रेणी महमुक्खगमणाओ पालयनन्दचन्दगुत्ताइराईसु वोलीणेसु । च उसय सत्तरेहि वासेहिं विकक्माइच्चो राया होही ।।-विविधतीर्थ कल्प का पावापुरीकल्प 39- वरिसाण समचउक्के सत्तरिजुत्तो जिणेद वीरस्स । गिब्बाण उववण्णा विक्कमकालस्स उत्पत्ती । विक्कमणिवकालाओछाहत्तरदसस एसु वरिसाणं । माहम्मि सुद्ध पखे दसमी दिवसम्मि संतम्मि ||-आमेर भंडार की १४५६ ई० में लिपिकृत वीरकवि द्वारा वि. सं १०७६ (सन् १०१९ ई०) में रचित जम्बूचरित्र काव्य की प्रशास्तिगत ।। इसी प्रकार कन्नड़ ग्रन्थ माघनन्दि-श्रावकाचार के कर्ता ने अपने ग्रन्थ की समाप्ति का समय शक १९७५ (सन, १२५३ ई.) सूचित करते हुए यह बता दिया कि उसके द्वारा प्रयुक्त शक सम्वत् की प्रवृत्ति महावीर निर्वाण के ६०५ वर्ष ५ मास पश्चात् हुई थी, यह कि उनके समय में महावीर निर्वाण वर्ष १७८०वा चल रहा था, आचारांगधारियों की परम्परा को समाप्त हुए (अर्थात म. सं. ६८३ से) १०९७ वर्ष बीत चुके थे और पंचमकाल के २१००० वर्ष में से १९२२० वर्ष शेष थे। स्पष्ट है कि १२वीं शताब्दी में भी जैनीजन महावीर निर्वाण ईसापूर्व ५२७ में हुआ निर्विवाद रूप से मानते थे। (देखिए-के. बी. पाठक का लेख, इंडियन एन्टीक्वेरी, XII, पृ० २१-२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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