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________________ [ ४५ अनुश्रुतियों के साथ संगति बैठाने का भी प्रयत्न किया, बुद्ध का निर्वाण ईसा पूर्व ५४४ में स्थिर किया और विक्रम को गौतमीपुत्र शातकणि के पुत्र एवं उत्तराधिकारी सातवाहनवंशी नरेश पुलुमायि प्र० से अभिन्न रहा बताया। डा० जायसवाल के मत का प्रधान दोष यह है कि उन्होंने जैन साधन-स्रोतों का आंशिक उपयोग ही किया-वहीं तक जहाँ तक उनसे उनके स्वयं के मत की पुष्टि होती थी, शेष की उपेक्षा कर दी। जैन लेखकों में इस विषय में मतभेद रहे हो सकते हैं कि विक्रम के जीवन की किस घटना से विक्रम सम्वत् की प्रवृत्ति हुई, किन्त इस विषय में वे पूर्णतया एकमत हैं कि वह महावीर-निर्वाण के ४७० वर्ष पश्चात हुई। इसके अतिरिक्त जायसवालजी यह मानकर चले हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य ई० पू० ३२५ में मगध के सिंहासन पर बैठा था और यह कि बुद्ध का निर्वाण ई०पू० ५४४ में हुआ था। इनमें से प्रथम घटना की तिथि अभी भी विवादास्पद है, और दूसरी की तिथि तो प्राय: निश्चित रूप से ई०पू० ४८३ में स्थिर कर दी गई है। विक्रम और सातवाहन नरेश पूलमायि का अभिन्नत्व भी किसी को मान्य नहीं है। कहा नहीं जा सकता कि इन परिवर्तित परिस्थितियों में महावीर-निर्वाण-काल के विषय में जायसवालजी का क्या मत रहता। (ख) महावीर-निर्वाण-काल में कमी करने का पक्ष वर्तमान में पर्याप्त बल पकड़े हुए है--आधुनिक विद्वानों में से अनेकों का झुकाव उसे ईसापूर्व ५ वीं शती में रखने की ओर है। उनके तर्क का मूलाधार यह है कि क्योंकि महावीर और बुद्ध प्राय: समसामयिक थे और बुद्ध का निर्वाण ईसापूर्व ४८३ में निश्चित होता है, अतएव महावीर का निर्वाण बुद्ध के निर्वाण से लगभग आंधी शती पूर्व नहीं हुआ हो सकता। दूसरी ओर प्रत्यक्षतः प्रबलतर परिकल्पना यूनानी इतिहास के साथ समीकरण पर आधारित चन्द्रगुप्त मौर्य की तिथियाँ हैं जिनके साथ महावीर निर्वाणकाल की संगति बैठाने का प्रयत्न किया जाता है। अस्तु, (१) एस. वी. वेङ्कटेश्वर ने महावीर निर्वाण की तिथि ईसापूर्व ४३७ अनुमान की। उनका कहना है कि क्योंकि बुद्ध का निर्वाण ईसापूर्व ४८५ और ४५३ के मध्य किसी समय हुआ था, और वह महावीरनिर्वाण के पश्चात हुआ नहीं हो सकता, अतएव अनुश्रुतिगम्य विक्रमपूर्व ४७० का अभिप्राय सन् ३३ ई० में प्रवत्तित अनन्द-विक्रम सम्वत् से होना चाहिए, जिसके अनुसार ई० पू० ४३७ की तिथि प्राप्त होती है ।16 किन्तु इस मत की पुष्टि किसी भी अनुश्रुति या अन्य आधारसे नहीं होती। प्रत्युत इसके स्व० डा. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अनन्द-विक्रम सम्बत् की कल्पना विषयक अपने लेख में17 यह सिद्ध किया है कि इस ई सम्वत कभी प्रारम्भ ही नही हुआ और न प्रचलित र: और न ही चन्दबरदाई के पृथ्वीराज रासों में उसका कोई उल्लेख है-श्री वेङ्कटेश्वर ने पृथ्वीराज रासो के तथाकथित उल्लेख के आधार पर ही अपना मत बनाया था। (२) प्रो० जाल शारपेन्टियर ने महावीर-निर्वाण ई० पू० ४६७ में स्थिर किया । वह इस परिकल्पना को लेकर चले हैं कि बुद्ध-निर्वाण की सुनिश्चित तिथि ई० पू० ४७७ है, और यह कि बौद्ध साहित्य के अनुसार महावीर और बुद्ध समसामयिक थे तथा मगध नरेश अजातशत्र के शासनकाल में विद्यमान थे। 15--'शैशुनाक एण्ड मौर्य कानोलाजी'--जर्नल बिहार-उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, वा० १, पार्ट १, पृ.९९-१०४ 16--दी डेट आफ वर्तमान--जर्नल रायल ए. सो, १९१७, पृ० १२२-१३० 17--देखिए-नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भा० १, पृ० ३७७-४५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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