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________________ ख - ३ [ ४३ संभवतया लिच्छवियों की ही एक शाखा थी, प्रमुख थे। महावीर की जननी त्रिशला अपरनाम प्रियकारिणी तथा विदेहदत्ता, वैशाली के लिच्छवि नरेश तथा महान वज्जिगण संघ के अध्यक्ष महाराज चेटक की पुत्री थी। 7 मातृपक्ष से महावीर का सम्बन्ध मगध, काशी, कोसल, वत्स, अवन्ति, अंग ( चम्पा) और सिन्धु-सौवीर के राजघरानों के साथ था । लगभग २९ वर्ष की आयु में महावीर ने सांसारिक सुखवैभव का परित्याग करके महाभिनिष्क्रमण किया, तदनन्तर साधिक १२ वर्षं उन्होंने दुर्द्धर तपः साधना द्वारा आत्मशोधन किया, फलस्वरूप कैवल्य प्राप्त किया और वह अर्हत्-जिन हो गये । अगले ३० वर्ष पर्यन्त उन्होंने स्थान-स्थान में पदातिक निरन्तर विहार करके जनभाषा अर्धमागधी में जनता को सद्धर्म का उपदेश दिया । महावीर का व्यक्तित्व अत्यन्त तेजपूर्ण था। वह अपने समय के महान धर्मोपदेष्टा थे । गौतम बुद्ध उन्हें अपना अति प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मानते थे 10 – वहभ० महावीर के कनिष्ठ समका लीन रहे प्रतीत होते हैं। जैनों ने भ० महावीर के पञ्चकल्याणक - गर्भावतरण, जन्म, अभिनिष्क्रमण, कैवल्य और निर्वाण की पूरी विगत, समय, तिथि, वार, नक्षत्रादि सहित बड़े यत्नपूर्वक सुरक्षित रक्खी है। और इस प्रकार भगवान महावीर का निर्वाण पावापुर के बाहर कमल सरोवरों एवं नाना प्रकार के वृक्षों से मण्डित रम्य उद्यान में, उन्नत भूमि प्रदेश में कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थिति, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के अन्तिम प्रहर ( प्रत्यूषकाल ) में स्वातिनक्षत्र में हुआ था | 11 उस समय उनकी आयु ७१ वर्ष ६ मास और १८ दिवस की थी । महावीर - निर्वाण काल के विषय में प्राचीन जैनों ने किसी संदेह, शंका या अनिश्चय के लिए कोई अवकाश नहीं छोड़ा। वर्तमान में भी सभी जैनीजन सर्वत्र महावीर निर्वाण सम्वत् का प्रवर्तन ईसापूर्व ५२७ में 6 - सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे । देव्या प्रियकारिण्यां सुस्वप्नात् सप्रदश्य विभुः । दशभक्ति, पृ० ११६ 7 - देखिये निश्यावलिया:, पृ० २७; एक श्वेताम्बर अनुश्रुति के अनुसार त्रिशला चेटक की भगिनी थी । 8-डा० बूलचन्दकृत महावीर, (जै० सं० स० मंडल, वाराणसी १९५३), पृ० १२-१३; इनके अतिरिक्त, कलिंगनरेश जितशत्रु महावीर के फूफा थे । 9- भ० महावीर ने किन-किन ग्रामों, नगरों एवं देश-प्रदेशों में विहार किया, इसका वर्णन जिनसेनकृत 'हरिवंशपुराण' (७८३ ई०), विजयेन्द्रसूरिकृत वीर विहार मीमांसा' (दिल्ली, १९४६), जैन सिद्धांत भास्कर, भाग १२, कि० १, पृ० १६-२२ आदि में देखें । 10 – सेक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, जिल्द २२ और ४५ की प्रस्तावनाएँ । 11- पद्मवनदीर्घिका कुल विविधद्रुमखण्ड मण्डिते रम्ये पावानगरोद्याने व्युत्सर्गेणस्थितः स मुनि: ।।१६।। कात्तिक कृष्णास्यान्ते स्वातावृक्षे निहत्य कर्मरजः । अवशेष संप्रापद व्यजरामरमक्षय सौख्यम ||१७|| -- पूज्यपादीय निर्वाणभक्ति क्रमात्पावापुरं प्राप्य मनोहर वनान्तरे । बहूनां सरसांमध्ये महामणि- शिलातले ।। कृष्ण कार्तिक पक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये । स्वातियोगे ............. -- गुणभद्रीय उत्तरपुराण पावापुरस्य बहिरुन्नत भूमि देशे पद्मोत्पलाकुलवतां सरसां हि मध्ये ........ -- भचष्णकृत वर्धमान पुराण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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