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________________ VIRAL महावीर के जीवन-दर्शन का आधार बिंदु -डा० प्रद्युम्न कुमार जैन युग दृष्टा महावीर ने जो सबसे पहला प्रश्न उभारा, वह था दु:ख । उन्होंने व्यापक अनुभव के आधार सारी समस्याओं का निचोड़ पाया दुःख रूप में। जीवन का यह सर्वस्वीकृत पहल उन्होंने अपने पहले प्रवचन में ही उजागर का दिया। उन्होंने घोषित किया कि सारे प्राणी दुःखी हैं और दुख-मक्ति के रूप में सख की आकांक्षा करते हैं। अत: दुःख प्राणियों का अरोपित सत्य है, अनैसर्गिक परिणति है और सुखाकांक्षा उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। इस विभाव अथवा अनैसर्गिक परिणति के कठोर सत्य को स्वीकारते हुए सुखोपलब्धि के जन्मसिद्ध नैसर्गिक अधिकार को पाना मनुष्य का धर्म है । इसी आधार पर धर्म की परिभाषा की गई, 'वत्थ सहावो धम्मो' अर्थात वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। धर्म जीवन की स्वभावीकरण की प्रक्रिया मात्र है अनैसगिक स्थिति को नैसागिक दिशा देने का अभियान है। इस स्वभावीकरण प्रक्रिया के सन्दर्भ में अब कई और प्रश्न उभर कर सामने आते हैं। दूःख क्या है ? वह क्यों है ? उसका निरोध कैसे सम्भव है ? निरोध की अन्तिम परिणति क्या है ? आदि आदि । इन सभी प्रश्नों के उत्तर महावीर के धर्मचक्र-प्रर्वतन के मुख्य मुद्दे.रहें हैं। चूंकि ये सभी प्रश्न वास्तविक जीवन से सम्बन्धित हैं. अतः इनके उत्तर भी ठोस वास्तविक होना अपेक्षित हैं। इन प्रश्नों के बारे में महावीर का रुख आद्योपांत वास्तविक है। वह दुःख जैसे मूलभूत तथ्य को काल्पनिक मानकर नहीं चलते। उनकी स्पष्ट देशना थी कि दुःख एक वास्तविकता है, अनुभूत वास्तविकता, और इससे जीवन के प्रत्येक स्तर पर वास्तविक रूप से ही निपटना है। अतः उनका दो ट्रक उत्तर था, कि दु:ख वास्तविक है, उसका कारण वास्तविक है, कारणों का निरोध वास्तविक है और निरोध की अन्तिम परिणति मी वास्तविक है। कहने का तात्पर्य है, कि जीवन की आद्यंत प्रत्येक अवस्था वास्तविक है, ठोस सत्य है। और उसे ठोस रूप में ही जानना और व्यवहारमा उपादेय है । यथार्थवाद महावीर के जीवन दर्शन का आधार बिन्दु हैं। दु:ख एक प्रतिक्रिया है। वह जिनीविषा का महा-भय को जीतने का संत्रास है। अस्तित्व आतंक. ग्रस्त है। इसी आतंक की प्रतिक्रिया दु:ख है। आतंकदर्शी महावीर ने देखा कि सम्पूर्ण अस्तित्व प्रतिक्रियाओं का पंज है। वह श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रियाओं की संहति है। वह किसी अज्ञात भय से निपटने का उपक्रम है। वह किसी महान युद्ध की तैयारी का अभियान है। इस युद्धरत और प्रतिक्रियापुंज संहति को ही महावीर ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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