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________________ FAS समग्र क्रान्ति के द्रष्टा -श्री शरद कुमार 'साधक' सामाजिक विषमता, राजनैतिक उठापटक, राष्ट्रीय-चरित्र-हीनता और डगमगाती मानवीय निष्ठाओं को देखकर लगता है कि जड़मूल से क्रान्ति करने का समय आ गया है। ऐसे समय भारतीय पृष्ठभूमि में जो क्रान्ति होगी, वह सांस्कृतिक तथयों की अनदेखी नहीं करेगी। इसलिए कहा जा सकता है कि व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र परिवर्तन की दिशा प्रशस्त करने वाले महाबीर हमारे एक ऐतिहासिक प्रकाश स्तम्भ हैं और उनके दर्शन से आज भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। महावीर के समय की सामाजिक स्थितियां काफी जटिल थीं। आपसी सम्बन्ध भी सन्देह रहित न थे। पिता-पुत्र, भाई-भतीजे, सगे-सम्गन्धी सब में कहीं-कहीं खिचाव था। तैलीपुर के नरेश कनकरथ ऐसे ही पिता ये, जो अपने पुत्रों का इसलिए अं-भंग कर देते थे, ताकि वे बड़े होकर राज्य-सिंहासन न हड़प लें। इसी प्रकार सम्राट बिबिसार के विरुद्ध अजातशत्रु के नैतत्व में उन्हीं के पुत्रों ने षड्यन्त्र रचा और उन्हें काल कोठरी में डाल दिया। अजातशत्रु और चेटक के युद्ध की साक्षी देने वाले वैशाली के खण्डहर आज भी यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि कैसे पड़ोसी राज्य एक दूसरे से हथियाये गये तथा कैसे-कैसे समधि राजाओं ने एक दूसरे को परास्त किया। वैशाली विजय में १ करोड ८० लाख मनुष्यों का संहार हुआ। महाभारत के बाद वही सबसे बड़ा युद्ध था। उस ऐतिहासिक युद्ध का परिणाम पूरे उत्तर भारत को भुगतना पड़ा। राज्यकुलों से सम्बद्ध होने के कारण महावीर ने जहाँ विजयी राजाओं का दपै देखा, वहीं विजित राजाओं की दयनीय दशा भी देखी। विजयी और विजित की दुर्दमनीय आकांक्षाओं के बीच पिसती जनता को बचाने की अनिवार्यता ने महावीर को नये सिरे से चिन्तन करने को विवश किया, जिससे स्नेह, सौजन्य, समता, सहयोग एवं शील की धारा बह निकली। मानना चाहिए कि अधिनायकवादी प्रवत्ति के दुष्परिणामों से जब महावीर ने समाज को अवगत कराया तो छोटी-छोटी इकाइयों को प्रश्रय देने वाली गणतांत्रिक व्यवस्था फली-फली और उससे आक्रमण एवं उपनिवेशवादी वृत्ति घटी। उस समय ७७०७ गणतांत्रिक घटक होना यही सिद्ध करता है कि महावीर की भूमिका केन्द्रित व्यवस्था को विकेन्द्रित कराने में महत्वपूर्ण गिनी गयी और फिर उस विकेन्द्रित व्यवस्था को उन्होंने धार्मिक आस्था में केन्द्रित किया । राजाओं की भांति धनीमानी लोगों का अपना एक संसार है। वे जो करते हैं, अपने ढग से। हर राज्य में उनकी अपनी अलग इकाई होती है। मगध हो या विदेह, अंग-बंग-कलिंग हो या काशी-कोशल. सर्वत्र पैसेवाले एक ही ढंग से जीते थे। वाराणसी के चुल्लनी-पिता बहुचर्चित हैं। वे आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं जमीन में गाड़ कर रखते थे, आठ करोड़ व्यापार में, आठ करोड़ खेती बाड़ी में और आठ करोड कर्ज देने में लगाए हुए थे। अस्सी हजार गायों की अपार संपत्ति के कारण उनका घर भरा-पुरा था। फिर भी वे सुखी नहीं थे। लगभग सभी धनाढपों की हालत ऐसी ही थी। उन सबको प्राप्त वैभव के संरक्षण एवं संवर्धन की चिन्ता थी तो दूसरी ओर गरीब जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी नहीं कर पाते ये। जमीन-आसमान सी विषमता ने हिंसा और क्रूरता की जड़े सींची। अमीरों ने देख कर अनदेखा किया तो गरीब लट-पाट पर उतर आये। राजगह निवासी धन्ना सार्थवाह ने अपने नौकर को निकाल दिया। वह लुटेरों के दल में जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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