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________________ महावीर, कितने ज्ञात कितने अज्ञात -श्री जमना लाल जैन भगवान महावीर के विषय में कुछ भी लिखना बड़ा मुश्किल है। वह अत्यन्त अदभुत व्यक्तित्व था। उसे व्यक्तित्व कहना ही अल्पता है। वे व्यक्तित्व से ऊपर उठ गये थे। पकड़ में आने जैसा उनका व्यक्तित्व था ही नहीं। उन्हें कहाँ से पकड़ा जाय, कहाँ से ग्रहण किया जाय, यह तय करना उन लोगों के लिये भी कठिन था जो उनके समय में भी जीवित थे, उनके आस पास उपस्थित थे, और जो समग्र रूप से उनकी वाणी को झेलने में तत्पर थे । बरसों तक महावीर का पदानुसरण करने के उपरान्त भी लोग भटक गये । बुद्ध जैसे ज्ञानी और श्रेणिक जैसे नृपति भी उस गहरे और अत्यन्त व्यक्तित्व की थाह न पा सके जिसे महावीर जी रहे थे और फैला रहे थे। महावीर का आना हमारे लिये हजारों-हजार वर्षों के लिये एक घटना हो गई है। हम इस घटना पर गर्व करते हैं और कहते हैं कि वह न 'भूतो न भविष्यति' है; लेकिन महावीर के लिये यह घटना अगण्य थी, न कुछ थी। वे घटनाओं की श्रृंखला से उत्तीर्ण हो चुके थे । संसार में लिप्त आँखें घटनाओं की कीमत पर व्यक्तित्व की महत्ता का मूल्यांकन करती हैं, तुला पर व्यक्तित्व को तोलती हैं। हम घटनाओं द्वारा व्यक्तित्व को आंकने के अभ्यस्त हो गये हैं। महावीर ने अपने को घटित होने से इन्कार कर दिया, शरीर के साथ, शरीर सम्बन्धों के साथ; संपार के बीच जो कुछ होता है, वह सब भरमाने वाला है। शरीर अगर राख होने वाला है तो उससे संस्पशित समस्त घटनाएं भी राख होने वाली हैं। इसका कोई शाश्वत मूल्य नहीं है । अगर महावीर के जीवन में घटनाए' नहीं मिलती हैं तो हम परेशान होते हैं, चितित होते हैं, बेचैन होते हैं, और अपने को दीन-दरिद्र समझते हैं। सचमुच अव्यक्त चेतना में और ऊर्जा में जीने वाले, आनन्दलोक में, प्रकाश में विचरण करने वाले को समझना और अपने जीवन में उतारना अत्यन्त कठिन है। महावीर यों सबको सुलभ थे, सबके समक्ष समुपस्थित, और आज भी वे प्रतिक्षण प्रकाशमान हैं, लेकिन हमारी बाह्य आँखें, बाहर भटकने वाली इन्द्रियाँ उनको देख नहीं पा रही हैं, क्योंकि हम बाह्यता पर लुब्ध है, विमोहित हैं। हमारी निष्ठा की परिधि वस्तुगत, पदार्थगत और घटनागत है । व्यापक-विराट अव्यक्त दर्शन का अभ्यास हमारी इन्द्रियों को रहा ही नहीं। हम घटनाओं के द्वारा परमता को, आत्मत्व को उपलब्ध करने के आकांक्षी हैं, जबकि महावीर आत्मतत्व को उपलब्ध होकर घटनाओं को तटस्थ भाव से देखते हैं और उनमें प्रविष्ट हो जाते हैं । हम कर्म और क्रिया द्वारा अहिंसक बनने की प्रक्रिया अपनाते हैं और हिसाब लगाते हैं कि इतना कुछ घटित हो जाने पर मुक्ति उपलब्ध होगी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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