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________________ [ ४७ जागे विवेक, जागे चेतन, जागे जीवन कल्याण मंत्र । सब राजनीति औ भेदनीति से कर मानव को फिर स्वतन्त्र ॥ इस मुक्ति रात्रि में, लो, बन्दी के अश्रुसजल शतशत प्रणाम । ओ मुक्त ! लोक के सुख-दुःख से क्या कभी ले सके तुम विराम ॥ बेबस आँसू में जन जन के, प्रभु ज्योतित कर दो आत्मज्ञान । अपना स्वामी सृष्टा बनकर, वह करे मांगलिक नव विधान ॥ -वीरेन्द्रकुमार जैन मंगल-रथ आत्मदर्श की लिये साधना, ग्राम-ग्राम में किया भ्रमण, जोवन दर्शन सहित, लोक दर्शन का इच्छुक महाभ्रमण । बीजगणित थे रात और दिन, आत्मज्ञान था समीकरण, हल करने की चाह लिए, वन-उपवन में करता विचरण ॥ अंतविरोध जिससे विनष्ट, वह वीतराग कुछ ऐसा था, मृग शावक का मित्र सिंह, तप का प्रभाव कुछ ऐसा था। आजाद-श्रद्धा शक्ति भाव, ____ व्यापा वसुधा पर दूर-दूर, बर्बरता और घमंड सभी, थे खंड-खंड व चूर-चूर ॥ -रमेश रायजादा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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