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________________ १८० શાસનસમ્રાદ્ જાટલેકેએ ઘણી ધમાલ કરી છતાં તેમની કારી ન ફાવવાથી છેવટે તેમણે જોધપુર દરબારી કેટમાં દા માંડ્યો. જૈન વિરુદ્ધ કેસ ચાલે. જૈનો તરફથી જોધપુરના વિખ્યાત વકીલ શ્રી જાલમચંદજી વિગેરે-કે જેઓ પૂજ્યશ્રીના અનન્ય ભક્ત હતા, તેઓ ઊભા રહ્યા. જાલોકે પુરવાર ન કરી શક્યા કે-“કાપરડાનું મંદિર એ જૈનેતર મંદિર હતું અને છે !' એટલે ન્યાયાધીશે જજમેન્ટ આપતાં જણાવ્યું કે “આ (કાપરડાનું) જેનોનું જ મંદિર છે, અને ચામુંડા માતા તથા ભરવજી પણ જૈનોના જ દેવ છે, એમાં કોઈ સંદેહ નથી. અને તેથી હવે બીજા કેઈને પણ આ મંદિરમાં હસ્તક્ષેપ કરવાનો અધિકાર નથી.” આથી જાટકોનું જૂઠાણું જગજાહેર થયું. નક્કત મહાતીર્થના મહિમાને તથા પૂજ્યશ્રીના અખંડ તપસ્તેજને પ્રભાવ સૌને પ્રત્યક્ષ જોવા મળ્યો. ઊકેશગચ્છીય મુનિવર શ્રી જ્ઞાનસુંદરજી મ. લખે છે કે - "जीर्णोद्धारका कार्य प्रारम्भ हो गया था परंतु अधूरा काम होने से पहले का सब किया कराया जीर्णोद्धार भी सफाया होने लगा। टीमें इत्यादि टूटने लगी और यह जार्ण मन्दिर गिरने की हालत में हो गया। उस समय कुदरत ने एक व्यक्ति के हृदयमें जीर्णोद्धार करने की भावना पुनः उत्पन्न की यह व्यक्ति थी जैन शासन के उज्ज्वल सितारे तीर्थाद्धारक प्रबल प्रतापी जैनाचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज ! आपकी शुभ दृष्टि इस तीर्थकी ओर हुई । जब आपने स्वयं पधार कर इस मन्दिर को देखा तो आपके रोमांच खड़े हो गये । सहसा आपके अन्तःकरण से यह ध्वनि प्रस्फुटित हुईहाय, हमारे तीर्थोकी आज यह दशा ! आपने मन ही मन दृढ़ संकल्प किया कि बिना इस तीर्थका जीर्णोद्धार कराये में गुजरात में प्रवेश नहीं करूँगा। दृढप्रतिज्ञ आचार्यश्रीजी अपने वचन पर तुले रहे । यों तो आपने और भी कई तीर्थों का जीर्णोद्धार करवाया था परंतु वहां तो सब साधनों आपको अनुकूल थे। द्रव्य सहायकों की भी पुष्कलता थी । जिससे उन तीर्थों का जीर्णोद्धार सानन्द समाप्त हुआ था, परन्तु यहां का वातावरण तो कुछ और ही था । जोर्णोद्धार के साधनों को यहाँ जुटाना जरा टेढो खोर थी । कार्यकर्ताओं की शिथिलता, द्रव्य का अभाव, जैनियोंको बस्ती का उस ग्राममें कम होना आदि कई बाधाएं उपस्थित थीं । दशा यहाँ तक सोचनीय थी कि आपके ठहरने के लिये भी कोई स्थान नहीं था । यहाँ तक कि आपको कईबार तम्बू और साईवानमें ही रहने को स्थान मिला । यह मन्दिर जैनेतर जनता के हस्तगत होनेवाला था। आचार्यश्री की पक्की लगन को देखकर उनके जोमें यह विश्वास हो गया कि अब यहाँ का जोर्णोद्धार अवश्य हो के रहेगा। कापरडाजी को आसपासको जनेतर जनताने इनके विपक्षमें आन्दोलन करने के लिये अपना जोरदार संगठन किया। सिवाय आचार्यश्री की शक्तिके और किसकी सामर्थ्य थी कि उनके समक्ष ठहर सके । विपक्षियोंने अधिक विघ्न उपस्थित किये । वादा. नुवाद इतना बढ़ गया कि अन्तमें इसका एक मुकदमा चला । जिनकी कार्यवाहो जोधपुरको अदालतमें होनो प्रारंभ हुई । जोधपुरके जैन वकीलोंने उस समय जी जान से सहायता दी। उपद्रवियों का इतना होंसला बढ़ गया कि यहाँ कुछ दिनों के लिये तथा शान्तिरक्षा के लिये पुलिस भी रखनी पड़ी। १. प्राचीन तीर्थ श्री कापरडाजी का सचित्र इतिहास पृष्ठ ५०,-कर्ता-ज्ञानसुन्दरजी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012056
Book TitleShasana Samrat Nemisuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherJindas Dharmadas Dharmik Trust Kadambgiri
Publication Year1973
Total Pages478
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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