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________________ પ્રશસ્તિ : લેખે તથા કાવ્ય [33&j की अभूतपूर्व सेवा की है, साथ ही जैन शासन को यशस्वी बनाने में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ___ आ० विजयानन्दसूरीश्वरजी, आ० विजयनेमिसूरीश्वरजी, आ० विजयनीतिसूरीश्वरजी, आ० बुद्धिसागरसूरीश्वरजी, आ० सागरानन्दसूरीश्वरजी, आ० विजयवल्लभसूरीश्वरजी आदि ने विभिन्न क्षेत्रों में जो महत्त्वपूर्ण भूमिकाये प्रस्तुत की है, वे हमारी पीढी के लिये अत्यधिक गौरव की अनुभूति है। “विषम काल जिन बिम्ब, जिनागम, भवियनको आधारा” को मूर्तरूप में जन २ में अधिष्ठित करने में इन आचार्यदेवों ने जो कार्य किये हैं, आज उस ही का परिणाम है कि पंजाव, गुजरात, गोडवाड, मारवाड व मेवाड प्रदेश में जिनशासन का डंका बज रहा है, साहित्य की ओर अभिरुचि जागृत हुई है, सुषुप्त जैन शासन ने करवट बदली है और एक बार फिर आज उस के तीर्थों एंव गगनचुम्बी देरासरों, आराधनास्थलों, उपाश्रयों, पाठशालाओं, शास्त्रभण्डारों ने सारे शासन में नई आस्ता पैदा कर दी है। आचार्य भगवन्तों की यह परम्परा निर्बाध गति से प्रवाहित है। आचार्य विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज तो जैन शासन के लोह-पुरुप हो ही गये हैं, पर अपने पीछे शिष्य-समुदाय की इतनी उन्नत शंखला छोड गये हैं, कि जो आज भी सारे देश में जैन शासन के साथ ही उनकी कीर्ति को चार चांद लगा रहे हैं। __ आचार्य विजयदर्शनसूरीश्वरजी, आचार्य विजयोदयसूरीश्वरजी, आचार्य विजयपद्मसूरीश्वरजी आदि आज हमारे बीच विद्यमान नहीं रहे, तो भी जैन शासन के प्रति उन सब की महान सेवाये स्वतः ही हम को नतमस्तक होने को प्रेरित करती हैं। उसी भव्य एवं महान शृंखला में दो आचार्य देव और अभी अभी स्वर्गस्थ हुसे हैं, जिन को कभी भुलाया नहीं जा सकता : आचार्य विजयनन्दनसूरीश्वरजी एव आचार्य विजयकस्तूरसूरीश्वरजी महाराज । आचार्य नन्दनसूरीश्वरजी महाराज सारे श्रमणसमाज मे सब से वृद्ध, ज्ञानी और बहुश्रुत रूप में जाने जाते थे। उन की सौम्यता, वाणी में मधुरता, शान्तचित्तता एवं गम्भीरता से प्रत्येक मिलने वाला प्रभावित हुये बगैर रहता नहीं था ।' गत वर्षों में अनेक बार पालीताना और खंभात में आपश्री के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कितने ही प्रश्नों पर चर्चा भी हुई। उन की सुलझी हुई विचारधारा, तुरंत निर्णय लेने की सुझबुझ ने सब के दिलों मे जो स्थान बनाया वह कभी मिट नहीं सकता । ७८ वर्ष की आयु में भी कार्य में जुटे रहने, हर पत्र का जवाब देने, आने वाले सब भाई-बहेनों के प्रश्नों का समाधान करने जैसी प्रवृत्ति युवकों को भी शर्माये बगैर रहती नहीं थी। ... अभी कुछ समय पूर्व ही जब आपश्री का चातुर्मास खंभात में था, हम जयपुर से करीब ३०० भाई-बहेनों का संघ लेकर पहुंचे थे। आचार्य भगवंत उस वक्त अस्वस्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012053
Book TitleVijaynandansuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatilal D Desai
PublisherVisha Nima Jain Sangh Godhra
Publication Year1977
Total Pages536
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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