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પ્રશસ્તિ લેખે તથા કાવ્ય હળતી જ્યોતિ સમાન હતું. તે ત સદાકાળને માટે બુઝાઈ ગઈ અને, ઉરના ઊંડાણમાંથી ઉદ્દભવેલા શબ્દો સરી પડ્યા–
" भूटी आयु तेस ने मुY ४ मत्तीयां, महिमा ५७यु २५ या."
सु४२ ४।५॥ छ। यक्ष्य! १ N.... પૂજ્યશ્રીના પતિતપાવન આત્માને શુભ શુદ્ધ ભાવથી કેટકટિ વંદના.
सच्चे सन्त
लेखिका-प. पू. साध्वीजी श्री निर्मलाश्रीजी महाराज, एम. ए., साहित्यरत्न. .
इस विशाल भूमण्डल पर अनेकानेक पुष्प खिलते हैं, जिनमें से कुछ तो खिलने से पूर्व ही विदा हो जाते हैं। कुछ खिलते ही कराल काल की चपेट में आ जाते हैं। कुछ विशिष्ट आत्माएं ही ऐसे फूल बनकर खिलती है, जो अहिंसादि व्रतोंके पथ पर चलते हुए स्वय सुगधित होती ही हैं, और दूसरों को भी अपनी ज्ञानादिरूप सौरभ प्रदान करती है।
जैन समाज के उद्यान में अक पुष्प खिला। वह अनवरत अपनी महक दूसरों को देता रहा । उसने आगतुकों को अपनी ओर आकर्षित किया । सद्गुणरूप सुवास की-पिपासु भक्तमडली भ्रमरवत् वहां मडराती रही । एक दिन काल ने आकर उस फूल को तोडा। फूल अपनी सौरभ लुटाकर मस्तीसे चला गया। फिर भी उद्यान का वातावरण उसी सुगध से ओतप्रोत था।
परम श्रद्धेय आचार्य देव पू. न'दनसूरीश्वरजी म. सा. ऐसे ही एक सुग'धित पुष्प थे। आपके दीर्घकालीन चारित्र पर्याय से, ज्ञान-ध्यान की अविरत आराधना से समाज को सही मार्गदर्शन मिला । आपके अनुभवरूप परागकण से जनसमूह. सुवासित रहा । आपके नेतृत्व में शिष्यसमुदाय को नवचेतना एवं नवजागृति मिली।
भारतीय संस्कृति में त्यागी सत का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सत अपने जीवन में सद्गुणों का सचयकर स्व-कल्याणपूर्वक विश्व का कल्याण करते हैं। इसी श्रमण-शृंखला में आचार्य श्री का नाम भी अविस्मरणीय रहेगा। आपने श्रीसंघ के प्रति जो जो उपकार किया है वह चिरस्मरणीय बना रहेगा। आपकी अवसरोचित निडरता, शास्त्रविशारदता और मुहूर्तादि विषयक ज्योतिष-शिल्पशास्त्र की पार गतता सबके लिए श्रद्धा का केन्द्र थी।
शरीर विनश्वर है। इस अकाट्य सिद्धान्त पर हजारों दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, धर्मधुर धरों एवं चिकित्सकों ने अपने ढग से प्रयोग किये । परन्तु कोई भी इस सिद्धान्त को अन्यथा सिद्ध नहीं कर सका।
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