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________________ डॉ. अरुणप्रताप सिंह दिगम्बर परम्परा के विपरीत मूलाचार की यह स्पष्ट अवधारणा उसे यापनीय परम्परा के और निकट ला देती है। पंचाधार मुलाचार का पंचम अधिकार है। इसमें क्रमशः दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार का वर्णन है। इस अधिकार की अधिकांश गाथाएँ उत्तराध्ययन से तुलनीय है। दुविहा य होति जीवा संसारत्था य णिव्बुदा येव। छद्धा संसारत्या सिद्धगदा णिव्बुदा जीवा।। - मूलाचार, 5/7 संसारत्था य सिद्धाय दविहा जीवा वियाहिया। सिद्धाउणेगविहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ।। - उत्तराध्ययन, 36148 पुढवी या बालुगा सक्करा, य उवले सिला य लोणे य। अय तब तउय सीसय रुप्य सुवण्णे य वइरे य।। - मूलाधार, 519 पुढवी य सक्करा वालुया य उवले सिला य लोणसे। अय तम्ब तय सीसग रुप्य सुवण्णे य वइरे य।। - उत्तराध्ययन, 36173 इस प्रकार मूलाचार की 5/10-12 तक की तीन गाथा उत्तराध्ययन की 36वें अध्याय की क्रमश: 74, 75 एवं 76वीं गाथा से शब्दशः तुलनीय है तथा मूलाचार की 5/13-17 तक की पाँच गाथाएँ जीव समास नामक श्वेताम्बर ग्रन्थ की क्रमशः 31वीं से 35वीं गाथा तक तुलनीय है। इस अधिकार की 33वीं गाथा द्रष्टव्य है, जिसकी तुलना उत्तराध्ययन के 36वें अध्याय के चौथे एवं दशवें श्लोक के पूर्वार्द्ध से की जा सकती है। अजीवा विय दुविहा स्वास्वा य रूविणो चदुधा। बंधा य खंधदेसा बंधपदेशा अणू य तहा।। - मूलाचार, 5/33 रुविणो धेवरुवीय अजीवा दविहा भवे।। - उत्तराध्ययन, 3614 खंधा य खंधदेसा य तप्पएसा तहेव य।। - उत्तराध्ययन, 36/10 इसी प्रकार उदाहरण स्वरूप मूलाचार की एक अन्य गाथा भी द्रष्टव्य है, जिसकी तुलना उत्तराध्ययन के दो श्लोकों के प्रारम्भिक पदों से की जा सकती है-~ आसाढे दुपदा छाया पुस्समासे चदुष्यदा। वड्ढदे हीयदे चावि मासे मासे दुअंगुला।। - मूलाचार, 5/75 64 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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