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प्रकाशकीय
जैन विद्या के पंचम खण्ड (Aspects of Jainology, Vol. V) का प्रकाशन श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा, कलकत्ता के हीरकजंवन्ती एवं पूज्य सोहनलाल स्मारक पार्श्वनाथ शोधपीठ के स्वर्णजयन्ती वर्ष 1988 के उपलक्ष्य में श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा कलकत्ता द्वारा आयोजित विद्वत् संगोष्ठी हेतु प्रस्तुत निबन्धों के संकलन के रूप में किया जा रहा है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा ने न केवल प्रस्तुत संगोष्ठी को आयोजित किया अपितु उसमें प्रस्तुत निबन्धों के प्रकाशन हेतु दस हजार रुपयों का आर्थिक अनुदान भी दिया
"वे ही व्यक्ति एवं संस्थाएँ जीवित रहती हैं जो दसरों के सुख-दुःख में सहभागी बनती हैं एवं सतत सेवा कार्य के लिये प्रस्तुत रहती हैं, इस उक्ति को चरितार्थ करती हुई श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा कलकत्ता अपने शिक्षा, सेवा एवं साधना के सेवा-प्रकल्पों का निरन्तर विस्तार करते हुए गतिमान है। सन् 1928 में स्थापित सभा की समाज तथा राष्ट्रोपयोगी एवं लोक-कल्याणकारी प्रवृत्तियाँ किसी भी समाज के लिये गर्व का विषय है। सभा ने अपनी सेवा की परिधि में समाज के प्रत्येक वर्ग के हित-साधन को ध्यान में रखा। शिक्षा हेतु कम्प्यूटर शिक्षा की सुविधा युक्त जैन विद्यालय और हाबड़ा में स्थापित विद्यालय, गरीब छात्रों की सुविधा के लिये जैन बुक बैक, रोगी एवं पीड़ित जनों की सेवा हेतु जैन चिकित्सालय, 4 करोड़ रुपयों की लागत से बन रहा अत्याधुनिक सुविधाओं वाला चिकित्सालय तथा साथ ही नियमित रूप से बड़े स्तर पर निःशुल्क नेत्र शल्य चिकित्सा शिविर एवं समय-समय पर श्री महावीर विकलांग समिति, जयपुर के सहयोग से निःशुल्क विकलांग शिविर का आयोजन सभा करती रही है। सभा द्वारा जैन-शिल्प-शिक्षा-केन्द्र एवं महिला उत्थान समिति के माध्यम से नारी उत्थान तथा विकास का प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त अल्प आय वाले जैन भाइयों को नितान्त कम शुल्क में शुद्ध एवं सात्विक आहार "जैन भोजनालय" के माध्यम से उपलब्ध कराने का कार्य सभा कर रही है। साथ ही स्वधर्मी भाइयों की सेवा सहित प्राणिमात्र की सेवा का व्रत पूर्ण करने के लिये जीव दयाकोष एवं स्वधर्मी सहायता कोष की स्थापना भी सभा कर रही है। धार्मिक उत्थान के लिए भी सभा प्रतिवर्ष स्थापना दिवस, क्षमायाचना दिवस, महावीर जयन्ती एवं जैनाचार्यों की जयन्तियों को अत्यन्त उत्साहपूर्वक मनाती है। अष्ट दिवसीय पर्युषण पर्व की आराधना भी तप, त्याग एवं प्रत्याख्यान पूर्वक सोल्लास मनायी जाती
है।
सभा कलकत्ता में ही नहीं अपित देश के विभिन्न भागों में शिक्षा एवं सेवा से जडी संस्थाओं को भी उदारतापूर्वक आर्थिक सहायता प्रदान करती रही हैं। सभा द्वारा पार्श्वनाथ शोधपीठ को अनेक प्रसंगों पर आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है। संगोष्ठी में प्रस्तुत निबन्धों का यह संकलन भी उसके जैन विद्या के प्रति अनुराग एवं उदार दृष्टिकोण का परिचायक है।
पार्श्वनाथ शोधपीठ भगवान पार्श्वनाथ की पवित्र जन्मस्थली पवित्रनगरी वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समीप स्थित है। जैन विद्या के उच्चानुशीलन एवं शोधकेन्द्र के रूप में यह देश का प्रथम एवं प्रतिष्ठित संस्थान है। शोध कार्य हेतु काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त यह शोधपीठ, जैनधर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास और संस्कृति के सम्बन्ध में शोधात्मक प्रवृत्तियों का तो जन्मदाता ही है। 10 नवम्बर, 1935 को अमृतसर में पूज्य श्री सोहनलाल जी म. सा. की पावन स्मृति में स्थापित इस समिति ने जैन विद्या के विकास एवं प्रचार-प्रसार हेतु सन 1937 में वाराणसी में अपनी शैक्षिक गतिविधियाँ प्रारम्भ की। इस शोधपीठ के प्रेरक
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