________________
दिगम्बर जैन परम्परा में संघ, गण, गच्छ, कुल और अन्वय
सन्दर्भ-ग्रन्थ
1. रत्नत्रयोपेतः श्रमणगतः संघः -- सर्वार्थसिद्धि, 6/13, पृ. 331 2. श्रमयन्ति तपस्यन्ति इति श्रमणाः तेषां समुदायः श्रमणसंघः
-- भगवतीआराधना, विजयोदयाटीका, 510, पृ. 730 3. मूलाचार, 5/66 4. नन्दिसूत्र स्थविरावली, 7-8 5. सर्वार्थसिद्धि, 9/24, पृ. 442, त. 2, श्लोक वा., 9/24, भावपाहुड टीका, 78 6. आचारांगशीलांकवृत्ति, 2,1,10,279, पृ. 322 7. आ. भिक्षु स्मृति ग्रन्थ -- द्वितीय खण्ड, पृ. 291 8. वरं गणपवेसादो विवाहस्स पवेसणं।
विवाहे राग उत्पत्ति गणो दोसाणमागरो।। -- मूलाचार, 10.92 9. आचार्यभिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 292 10. गच्छ ऋषिकुलं -- मूलाधार वृत्ति 4/185 11. सप्तपुरुषकस्त्रिपुरुषको वा गच्छः, वही, 4/174 12. सर्वार्थसिद्धि, 9/24, पृ. 442 13. स्थानांग टीका (अभयदेवसूरी), पृ. 516 14. मूलाचार, 4/166 15. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 291 16. प्रवचनसार ता. वृत्ति, 203, पृ. 276 17. यापनीय और उनका साहित्य, पृ. 42 18. गोपुच्छिका श्वेतवासा द्राविडो यापनीयकाः ।
निपिच्छकाश्चेति पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ।। --- इन्द्रनन्दिश्रुतावतार, 10 19. पद्मचरितम् - भाग 1, श्री नाथूराम प्रेमी का प्राक्कथन, सन् 1928 20. तस्मिन्नगते स्वर्गभुवं महर्षी दिवः पति नर्तुमिवप्रकृष्टां।
तदन्वयोद्भूत मुनीश्वराणां बभूवुरित्थं भुवि संघभेदाः ।।19 ।। जैन सिद्धान्त भाष्कर अंक 2-3 में प्रकाशित
शिलालेख। 21. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भाग 2, पृ. 55 22. इन्द्रनन्दि श्रुतावतार श्लोक, 91-95 23. आयातौ नन्दिवीरौ प्रकटगिरिगृहावासतोऽशोकवाटा
देवाश्चान्योऽपरादिर्जित इतियतयो सेन-भद्राद्यौ च। पंचस्तप्यात्सगुप्तौ गुणधरवृषभः शाल्मलीवृक्षमूलात् निर्यातौ सिंहचन्द्रौ प्रथितगुणगणी केसरात्खण्डपूर्वात् ।।
- इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार श्लोक 96 24. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 295 25. वही, 26. यापनीय और उनका साहित्य, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी, पृ. 41, 27. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 294
139
नापच्छका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org