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________________ शिवप्रसाद हुआ। अन्यान्य ग्रन्थों के रचनाकार, सुल्तान मुहम्मद तुगलक के प्रतिबोधक शासनप्रभावक आचार्य जिनप्रभसूरि इसी शाखा के थे। वि.सं. की 18वीं शती तक इस शाखा का अस्तित्व रहा। 4. बेगड़ शाखा -- वि.सं. 1422 में यह शाखा अस्तित्व में आयी। जिनेश्वरसूरि इस शाखा के प्रथम आचार्य हुए। 5. पिप्पलकशाखा -- वि.सं. 1474 में जिनवर्धनसूरि बरा इस शाखा का उदय हुआ। श्री नाहटा के अनुसार पिप्पलक नामक स्थान से सम्बद्ध होने से यह पिप्पलकशाखा के नाम से जाना गया। इसी नाम की एक शाखा वडगच्छीय शांतिसरि के शिष्य महेन्द्रसरि, विजयसिंहसरि आदि के द्वरा वि.सं. 1181/ई.सन् 1125 में अस्तित्व में आयी। 6. आधपक्षीयशाखा -- वि.सं. 1564 में आचार्य जिनदेवसूरि से यह शाखा अस्तित्व में आयी। इस शाखा की एक गद्दी पाली में थी। ____7. भावहर्षीयाशाखा -- वि.सं. 1621 में भावहर्षसूरि से इसका उदय हुआ। इस शाखा की एक गद्दी बालोतरा में है। ___8. लघुआचार्यशाखा -- आचार्य जिनसागरसूरि से वि. सं. 1686 में यह शाखा अस्तित्व में आयी। इसकी गद्दी बीकानेर में विद्यमान है। 9. जिनरंगसूरिशाखा -- यह शाखा वि.सं. 1700 में जिनरंगसूरि से प्रारम्भ हुई। इसकी गद्दी वर्तमान में लखनऊ में है। ___10. श्रीसारीयशाखा -- वि.सं. 1700 के लगभग यह शाखा अस्तित्व में आयी, परन्तु शीघ्र ही नामशेष हो गयी। ____11. मंडोवराशाखा -- जिनमहेन्द्रसूरि बरा वि. सं. 1892 में मंडोवरा नामक स्थान से इसका उदय हुआ। इसकी एक गद्दी जयपुर में विद्यमान है। श्रीअगरचन्द नाहटा और श्री भंवरलाल नाहटा ने इस गच्छ की साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों का न केवल संकलन और प्रकाशन किया है, अपितु उनका सम्यक् अध्ययन भी समाज के सम्मुख रखा है। चन्द्रगच्छ चन्द्रकुल ही आगे चलकर चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजगच्छ, वडगच्छ, खरतरगच्छ, पूर्णतल्लगच्छ, भावडारगच्छ, पूर्णिमागच्छ आदि कई गच्छ चन्द्रकुल से ही अस्तित्व में आये। इस गच्छ से सम्बद्ध कई प्रतिमालेख मिलते है जो वि.सं. 1072 से वि.सं. 1552 तक के है। मुनिपतिधरित्र [ रचनाकाल वि.सं. 1005] एवं जिनशतककाव्य [ रचनाकाल वि.सं. 10251 के रचयिता जम्बूकवि अपरनाम जम्बूनाग इसी गच्छ के थे। सनत्कुमारचरित के रचनाकार चन्द्रसूरि भी इसी गच्छ के थे। इसी गच्छ के शिवप्रभसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि ने वि.सं. 1261 में प्रत्येकबुद्धचरित की रचना की। वसन्तविलास के रचनाकार बालचन्द्रसूरि, प्रसिद्ध ग्रन्थ संशोधक प्रद्युम्नसूरि, शीलवतीकथा के रचनाकार उदयप्रभसूरि इसी गच्छ के थे।23 इस गच्छ के सम्बन्ध में विशेष विवरण अन्वेषणीय है। चैत्रगच्छ मध्ययुगीन श्वेताम्बर गच्छों में चैत्रगच्छ भी एक है। चैत्रपुर नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। इस गच्छ के कई नाम मिलते हैं यथा -- चैत्रवालगच्छ, चित्रवालगच्छ, चित्रपल्लीयगच्छ, चित्रगच्छ आदि। धनेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। इनके पट्टधर भुवनचन्द्रसूरि हुए जिनके प्रशिष्य 120 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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