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________________ डॉ. संजीव भानावत संपादन में साप्ताहिक "अहिंसा समीर" का प्रकाशन हुआ। अप्रैल 1981 में ही "वन्देवीरम्" नामक एक अन्य मासिक पत्र का प्रकाशन आचार्य अमृतकुमार जैन के संपादन में हुआ। नवम्बर 1981 में मुनिश्री महेन्द्रमुनि "कमल" के दिशा-निर्देशन में जीवन सिंह चौधरी के संपादन में भीलवाडा से मासिक "तपोधन" का प्रकाशन हुआ। इसी वर्ष श्री वीतराग सांस्कृतिक संघ, अहमदनगर की ओर से बाल मासिक "आनन्द दीप" का प्रकाशन किया गया। बच्चों को कुव्यसनों से दूर रखने और संस्कारवान बनाने की दृष्टि से यह पत्रिका उल्लेखनीय है। सन् 1982 में जिनेन्द्र कुमार जैन ने जयपुर से "जैन समाज" नाम दैनिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया। जैन पत्रकारिता की इतिहास यात्रा का यह प्रमुख बिन्दु है, जब एक समग्र रूप से जैन दैनिक के प्रकाशन की योजना ने साकार रुप लिया। इसी वर्ष गाजियाबाद से "अरिहन्त टाइम्स" तथा अजमेर से "बढ़ते कदम" नामक साप्ताहिक पत्रों का भी प्रकाशन हुआ। 1983 में डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल के संपादन में "वीतराग विज्ञान" मासिक का प्रकाशन जयपुर से हुआ। अगस्त, 83 में पाक्षिक "महाप्राण" दिल्ली से प्रकाशित हुआ। मार्च, 1984 में श्री श्वे.स्था. जैन स्वाध्याय संघ, गुलाबपुरा की ओर से त्रैमासिक "सम्बोधि" का प्रकाशन किया गया। मार्च 85 से पत्रिका का नाम "स्वाध्याय संदेश" हो गया। जनवरी 1988 से यह द्वैमासिक हो गयी। मार्च 1984 में ही लुधियाना से बाल मासिक "नूतन जैन पत्रिका" का प्रकाशन हुआ। अप्रैल 1984 में जैन विद्या संस्थान, महावीरजी द्वारा अर्द्धवार्षिक शोध पत्रिका "जैन विद्या" का प्रकाशन प्रो. प्रवीणचन्द जैन के संपादन में हुआ। इस वर्ष प्रकाशित अन्य पत्र थे-- पुष्पदन्त धारा (भिलाईनगर), जिनप्रतिभा (जोधपुर), श्रमण (महावीर) बाद में श्रमण स्वर, आकोला (चित्तौड़गढ़), भातृसभापत्रिका (बम्बई), "आगम आलोक" (आबू पर्वत), "समता युवा संदेश" ( रतलाम), धर्मचक्र बाद में संगम धारा (जयपुर)। सन् 1985 में प्रकाशित पत्रों में अहिंसा (जयपुर), स्याद्वाद (दीमापुर, नागालैण्ड), खरतर संदेश (वाडमेर), पार्श्वज्योति (बिजनौर), विचारवाणी (ब्यावर) आदि प्रमुख हैं। तीर्थंकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति, उ.प्र., लखनऊ 1986 में जयपुर से सम्याज्ञान प्रचारक मण्डल द्वारा द्वैमासिक "स्वाध्याय शिक्षा" का प्रकाशन किया। डॉ. नेमीचन्द्र जैन के सम्पादन में इन्दौर से "शाकाहार क्रांति" का प्रकाशन मार्च-अप्रैल 1987 में हुआ। इससे पूर्व जनवरी-फरवरी 1987 में इसका प्रकाशन "शाकाहार समाचार" के रूप में हुआ। इसी वर्ष वल्लभनगर (उदयपुर) से "समाज दर्पण" का प्रकाशन किया गया। जून 1987 में "गोम्मटवाणी" का प्रकाशन हुआ। अक्टूबर 1987 में उदयपुर से "तरुण ओसवाल" प्रकाशित हुआ। जनवरी 1988 में जयपुर से "विमलधर्म आख्यायिका" का प्रकाशन हुआ। दिसम्बर, 1988 में इन्दौर से "जिनोपासक" मासिक तथा इन्दौर से ही "समय" त्रैमासिक का प्रकाशन हुआ। मूल्यांकन जैन पत्रकारिता का एक शताब्दी का इतिहास अपने उद्भव और विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक, राजनीतिक सुधारों एवं आजादी प्राप्त करने की उत्कट अभिलाषा की पृष्ठभूमि में अंकुरित-पल्लवित हिन्दी जैन पत्रकारिता आज स्वतन्त्र भारत में न सिर्फ राष्ट्रीय निर्माण के लिए जन-चेतना जागृत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है वरन् राष्ट्रीय चरित्र और संस्कार निर्माण के पवित्र संकल्प के प्रति प्रतिबद्ध भी है। सार्वजनिक पत्रकारिता की भाँति तीखा स्वर तथा तेजस्विता और प्रखरता का बाह्य भाव भले ही जैन पत्रकारिता में दृष्टिगोचर न होता हो किन्तु उसमें अपनी आन्तरिक तेजस्विता है, तप एवं साधना का कठोर बल है, जिसकी प्रदीप्त भावभूमि पर जैन पत्रकारिता विकासित हुई और व्यक्ति एवं राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण तथा सरल, सहज सात्विक जीवन के आदर्श के लिए संघर्षरत रही। 94 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012052
Book TitleShwetambar Sthanakvasi Jain Sabha Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ashok Kumar Singh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages176
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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