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जैनधर्म और इस्लाम में अहिंसा : तुलनात्मक दृष्टि और दूसरे की निंदा करते हैं, सत्य को भ्रमित करते हैं, वे संसार में भटकते रहेंगे।" पैगम्बर मुहम्मद साहब ने भी कहा है कि तुम दूसरों के पैगम्बरों को, उनके धर्मग्रन्थों को बुरा मत कहो । अहिंसा आज के युग में बहुत आवश्यक है। आतंक और हिंसा के सागर में डूबते मनुष्य को अहिंसा त्राण दे सकती है जैसा कि 'प्रश्नव्याकरण' में कहा गया है-"समुद्दमज्ञ व पोतवहणं" । आज मनुष्य मनुष्य से भयभीत रहता है, आज का परिवेश आतंक, भय, हिंसा, क्रोध, घृणा से भरा है और उससे निकलने का एकमात्र उपाय है अहिंसा । अहिंसा की भावना को जीवन में उतारना, अहिंसामय जीवन जीना। मनुष्य का मनुष्य पर भरोसा नहीं, वह उसपर विश्वास नहीं करता, उससे प्रेम नहीं करता, उससे डरता है
ए आसमाँ तेरे खुदा का नहीं है खौफ, डरते हैं ए जमीं तेरे आदमी से हम ।
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