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जैन एवं काण्टीय दर्शनों की समन्वयवादी पद्धतियां
१२१ है और सविकल्पक बुद्धि का आधार वह ज्ञान होता है जो स्वतः सिद्ध होता है। यदि स्वतः सिद्ध ज्ञान न हो तो, एक के बाद दूसरे, तीसरे, चौथे प्रमाण आते रहेंगे । इसके फलस्वरूप अनवस्था दोष आ जायेगा। इसलिए बुद्धि के मौलिक नियमों को स्वतःसिद्ध निर्विकल्पक और अतीन्द्रिय माना जाता है। प्रमाण जनित ज्ञान का साधन सविकल्पक बुद्धि होती है। निर्विकल्पक या स्वतःसिद्ध सत्य के लिए कोई प्रणाली नहीं निश्चित की गई है किन्तु सविकल्पक सत्य के लिए निगमन पद्धति को अपनाया गया है। इस पद्धति में पूर्व प्रमाणित ज्ञान के आधार पर विश्लेषण करके किसी नए ज्ञान की प्राप्ति होती है।
इस तरह देकार्त ने यह प्रतिपादित किया है कि ज्ञान उस प्रत्यय के आधार पर होता है जो सहज, स्वाभाविक, सार्वभौम, अतीन्द्रिय या अनुभव निरपेक्ष ( Apriori ) तथा स्वतः सिद्ध होता है। साथ ही उन्होंने जिस प्रणाली को अपनाया है, वह निगमनात्मक ( Deductive ) तथा विश्लेषणात्मक ( Analytic) है। इन्हीं मान्यताओं को बेनेडिक्ट्स स्पिनोजा ( Benedictus Spinoza ), लाइबनिज़ ( Gottfried W. Leibnitz ) आदि बुद्धिवादी दार्शनिकों के चिन्तन में प्रश्रय मिला है। अनुभववाद
अनुभववाद के प्रतिष्ठापकों में पहला नाम जॉन लॉक ( John Lock ) का आता है। उन्होंने बुद्धिवाद की इस मान्यता को पूर्णतः गलत बताया है कि ज्ञान जिस साधन से प्राप्त होता है वह सहज एवं अतीन्द्रिय है। न कोई सहज प्रत्यय होता है और न स्वाभाविक ज्ञान ही। जो भी ज्ञान प्राप्त होते हैं, वे इन्द्रियानुभूति के माध्यम से होते हैं। अपने इस सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए उन्होंने सहज प्रत्यय का विभिन्न तर्कों के आधार पर खंडन किया है-- (क) यदि ज्ञान के स्रोत को हम सहज मान लेते हैं तो ऐसा कहा जा सकता है कि
ज्ञान सम्बन्धी सही खोज करने से हम कतराते हैं। (ख) यदि ज्ञान सहज है तो उसकी प्रतीति पागलों, मूों तथा बालकों को भी होनी
चाहिए, किन्तु ऐसा नहीं होता। (ग) सभी देश के लोगों को एक ही जैसा ज्ञान होना चाहिए परन्तु ऐसा भी
नहीं होता। (घ) यदि बुद्धि जन्मजात या स्वाभाविक होती, तो ईश्वरवाद, अनीश्वरवाद आदि धर्म
के विभिन्न सिद्धान्त नहीं होते, धर्म सम्बन्धी एक ही मान्यता होती। (ङ) नीतिशास्त्र में भी अलग-अलग सिद्धान्तों के समर्थन नहीं प्राप्त होते। सहज
बुद्धि के आधार पर सबके विचार एक जैसे होते और जैसा विचार वैसा आचार, अर्थात् सभी व्यक्तियों के आचरण एक जैसे होते । किन्तु अलग-अलग लोगों के
अलग-अलग आचार देखे जाते हैं। उपरोक्त तर्कों के आधार पर लॉक ने यह प्रमाणित कर दिया कि सहज प्रत्यय या जन्मजात बुद्धि नहीं होती है। तब यह समस्या उठी कि आखिर ज्ञान होता कैसे है ? इसका
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