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श्री. मोहनलाल दलीचंद देशाई हाटह हुंतउ घरि पहुत जइ भोजन वार, पूजा बीजी वार करइ भाविहिं सुविचार. दीण गिलाणह पाहुणउ ए संभाल करावइ, सह हथिहिं सूधउ आहार मुणिवर विहरावइ; ओसह वसह भत्त पाण वसही सयणासण, अवर वि जंइ हंति साहु तं देइ सुवासण. जउ तिणि ठार न हुंति साहु तउ दिसिअ वलावइ, मणि ( मुणि ) भावइ श्रावइ सुपात्र तउ भल्लउ होवइ; कवण कीयउ पच्चखाण आज मइं इम संभालइ, बइठउ ठामि सचित्त ठाइ आहार आहारइ. करि भोयण निद्रा विहीण पिण इक वीसमइ, तो पाच्छिल्लइ पहरि पुणवि पोसालइ गम्मह पढइ गुणइ वाचइ सुणेवि पूछेइ पढावइ, अह जियालू करणहार सो जिय घरि आवइ. दिवस अठम भागि सेसि जीमेइ सुजाण, पाच्छिल दुह घडीयाह दिवस चरिमं पचखाण; सांजइ तीजी पूज करवि सामाइक लीजइ तउ देवसीय पडिकमेवि सज्झाय करीजइ रयणिहि वीतइ पढम पहरि नवकार भणेविण, अरिहंत सिद्ध सुसाध धम्म सरणइ पइसेविण; पचखाण सागार कर वि सवि जीव खमेविण, सावय सोवइ पवइ पाव तिहिं बंभइ भावई मणु
॥ वस्तु ॥ अत निद्धिहिं अत निद्धिहिं चित्ति चिंतेइ, स तुजि उजउ चडवि जिणइ पूय कइयइ कराविसु; साहम्मिय गउरव करिसु कइय कइय पुत्थय भराविसु,
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शताब्दि ग्रंथ]
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