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॥१८॥
॥१९॥
श्री. मोहनलाल दलीचंद देशाई निय तीय ए करि संतोस, परती मन्नह मा बहनि; परिहरउ ए कूडउ सोस, करि परिमाण परिग्गह ए. जाणवी ए धम्मह भेद, दान-सीयल-तप-भावनाहिं; देसणा ए एम सुणेवि, वंदवि गुरु जो धरि गयउ ए. धोवती ए मिहलवि ठाइ, तउ ववसाय समाचरई ए; परिहरउ ए पाप-व्यापार, न्याय हि धण कण मेलवइं ए.
॥ वस्तु ।। कहउं पनरस कहउं पनरस कम्म-आदाण; इंगाली वण सगड भाड फोड जीविय विवजहु, दंत लक्ख रस केस विस वणिज कजि न कयावि संचहु; जंत पीड निल्लंछणह असइ-पोस दव दाण, सरह सोस सो किम करइ, होइ जु माणस जांण.
॥२०॥
॥ २१॥
॥ ढाल॥
लोहकार सोनार ढंढार, भाड भुंज अनइ कुंभार; अरु पीरु आजु नर वीकंते, ते रंगाली कम्म करंति, ॥२२॥ कंद कठ तृण वणफल फुल्लइ, विक्कर पत्त जि लब्भइ मुल्लइ, खंडण पीसण दलण जु कीजइ, वण जीविया कम्मसु कहीजइ. ॥ २३ ॥ धडइ सगड जो वाहइ वीकइ तीजइ कम्मादाणि सु ढक्कड; खर वेसर महि सुड्ढ बलद्द, भाडइ भार म वाहिसि भद्द. ॥ २४ ॥ कूव सरोवर वावि खणंते, अन्नुवि उड्डह कम्म करते; सिलाकुट्ट कम्म हल खेडण, फोडि कम्मजि भूमिहिं फोडण. ॥२५॥ दंत केस नह रोमइ चम्मइ, संख कवड्डय पोसय सुम्मइ; कसतूरी आगरु जिवि साहइ, सो नर सावय-धम्म विराहइ. ॥ २६ ॥ लाख गुली धाहडीय महुआ, टंकण मणसील वणिज; पूरी वज लेवसा कूडा, हरियाला नवि रूडा.
॥ २७॥
शताब्दि ग्रंथ]
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