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________________ पंन्यास श्री ललितविजयजी जंडियाला, गुरु के स्थानकवासी संप्रदाय के प्रमुख श्रावक मोहरसिंह आप के पास आये, वन्दना की और बैठ गये । बातों ही बातों में उन्हों ने गुरुदेव से पूछा: "महाराज ! आप मुँह पर मुखपत्ति बांधना ठीक समझते हैं ? " महाराज ने निर्भीकतापूर्वक उत्तर दिया : " मैं इसे सर्वथा ठीक नहीं समझता । " " तो फिर आप इसे बाँधते क्यों हो ? " मोहरसिंह ने प्रश्न किया । " तुम्हारे जैसे बैलों को अपने बाड़े में लाने के लिए । ," महाराज साहब का उत्तर था । " यदि मैं मुखपत्ति न बाँधू तो तुम्हारे जैसों को मैं जो कुछ सिखलाना चाहता हूँ, कैसे सिखला पाऊँगा ? हमारा तुम्हारा संबंध तो केवल इस मुखपत्ति का ही है । यदि मैं इसे न बाँधु तो क्या तुम मेरा कहना सुनोगे ? " मेरा और तुम्हारा नाता मुँहपत्ति मात्र का है। जहाँ तक मुहपत्ति है वहाँ तक ही तुम मेरे पास आते हो और मैं तुम को वीतरागदेव के सत्य सिद्धान्तों को समझा सकता हूँ। जब मुँहपत्ति उतार दूंगा तब तुम मेरे पास आना बंद कर दोगे । उस हालत में मैं तुम को धर्म का सच्चा स्वरूप नहीं समझा सकता । " एक प्रधान श्रावक को इस प्रकार स्पष्टतया निडर भाव से उत्तर देना क्या सरल है ? भूलों को, गलतियों को, निडर होकर कह देना, सच्चाई के आगे मुँह देखे व्यापार को मिटा देना । सत्य प्रेम हो तो ऐसा । धन्य गुरुदेव ! तीसरी घटना सुनिए: आपके साधु समुदाय में दैववशात् एक साधु का चरित्र कुछ शंकास्पद था । आप ने उसे बार २ सुधरने के लिए कहा, किन्तु विशेष प्रभाव कुछ नहीं पड़ा । आखिर आपने उस साधु के गुरु ( अपने प्रधान शिष्य ) को एक पत्र लिखा । पत्र की पंक्ति स्मरण करने योग्य है । उसका सारांश यह है - " याद रखिये, अपने शिष्य को और शुद्ध कीजिये, अन्यथा कल्याण नहीं है । मैं “ अमरसिंह " दशा रहती है तो मैं इसे निकाल - समुदाय से बाहर करता हूँ । I सुधारिये, समझाइये नहीं हूँ । यदि यह ".... आदि । अपने साथियों की हितकामना, चरित्र का उत्कट पालनभाव क्या इस घटना से सिखने योग्य नहीं हैं ? शताब्दि ग्रंथ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only : ६१: www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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