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मंत्रवादी श्रीमद् विजयानंदसूरि एवं श्वसुर आदि सभी विरोधी थे। महाराजश्री ऐसी दीक्षा देने से इन्कार करते थे। चातुर्मास पूरा हुआ, विहार का समय निकट आता रहा उस समय एक दिन मेरे गुरुजी ने महाराजश्री से कहा “ दीक्षा न होना यह अपवाद है।” महाराजश्री ने कहा “ आप की इच्छा होगी तो अपवाद नहीं रहेगा।” बस दो चार दिनों में ही सब बातें अनुकूल बन गई और सर्वसम्मति से दबदबे के साथ वह दीक्षा हुई । यह चमत्कार देखकर लोक भी आश्चर्यचकित बन गये, एवं मेरे गुरुजी ने भी आपके मंत्रवाद के संबंध में प्रसंगवश अनेक बातें मुझ से कही हुई हैं एवं दिग्विजयी होने का एक मात्र कारण मंत्रवाद है । आप के स्वर्गीय शिष्य श्री शांतिविजयजी को भी आपने अनेक सिद्धविद्याएँ दी थी जिससे वे भी पूजाए गये एवं उनसे कुछ मुझे भी प्राप्त हुई हैं।
मेरा अनुभव है कि-महाराजश्री ने अपने शिष्य समुदाय में श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजी कों भी उक्त विद्याएँ अवश्य दी होंगी क्यों कि आप की सेवा इन्हों ने ही विशेष की थी और इसलिये आज आप सर्वत्र दिग्विजयी बने रहे हैं।
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[ श्री आत्मारामजी
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