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"यदि अपने अंतस की बात सुनें तो सर्वप्रथम हमे अपने हृदय रूपी कमरे के दरवाजे एवं खिड़िकियाँ खुली रखनी होगी। हमारे घर व बस्ती के पास कितने अभावग्रस्त व दुःखी लोग रहते हैं, उनकी यथासाध्य सेवा करनी होगी जो पीड़ित हैं, उनके लिए औषधि व पथ्य प्रबंध तथा शरीर के द्वारा उनकी सेवा सुश्रूषा करनी होगी जो अज्ञानी है, अंधकार में है उन्हें अपनी वाणी एवं कर्म के द्वारा समझाना होगा। यदि हम इस प्रकार अपने दुःखी भाई-बहनों की सेवा करें तो मन को अवश्य ही शांति मिलेगी।"
अभावग्रस्त, गरीब व विकलांग छात्र-छात्राओं के शिक्षा व पुनर्वास की व्यवस्था कर उन्हें दूसरों के समकक्ष बनाकर समाज में पहचान देना नि:संदेह प्रशंसनीय व अनुकरणीय है। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण है उन्हें संस्कारित करना जीवन में सादगी, सरलता, दया, करुणा, अहिंसा व सत्य की झलक दिखे वैसा उन्हें गढ़ना व्यसनों से होने वाली हानियों का ज्ञान कराकर सात्विक जीवन जीने की कला भी उन्हें सीखा दें तो निश्चित रूप से महात्मा गाँधी के स्वप्नों के भारत के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। कुछ बालक-बालिकाओं के नेत्र ज्योति नहीं होती, कुछ मूक बधिर व विकलांग होते हैं किन्तु उनका सरल हृदय व सहज भाव निश्चित रूप से सबको अभिभूत कर देता है।
भारत के विभिन्न महानगरों एवं नगरों के साथ-साथ हमारे नगर की संस्था अभिलाषा (निःशक्तजनों का पुनर्वास व शिक्षण केन्द्र, मनोकामना (मंदबुद्धि बच्चों का शिक्षण केन्द्र) आस्था (मूक बधिर बच्चें का शिक्षण व पुनर्वास केन्द्र) तथा इसी तरह सेवा के अन्य मन्दिरों में जाकर हमें एक ओर सेवा का व्रत लेना चाहिये दूसरी ओर प्राप्त इंद्रियों को सदैव परोपकार में लगाने का संकल्प लेना चाहिये। इन सेवा संस्थानों में जाकर इन विकलांग बच्चों को देखकर एक बात की शिक्षा अवश्य लेनी चाहिये कि हमें प्रबल पुण्योदय से मानव तन प्राप्त हुआ है और पांचों इंद्रियां परिपूर्ण मिली हैं किन्तु उसका दुरूपयोग किया या इन इंद्रियों का उपयोग केवल रस लोलुपता, निंदा विकथा, विषय वासना, अन्याय अत्याचार के लिए किया तो आगामी जीवन में हम इंद्रियों से हीन हो जाएंगे या शिथिल इंद्रियाँ पाएंगे अतः कहीं हम इंद्रियों के पराधीन न हो जाएं, ऐसा चिंतन सतत करना चाहिये ।
इसी परिपेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि कोलकाता जैसे महानगर में अत्यंत कम शुल्क में संस्कार युक्त शिक्षा की व्यवस्था करना किसी चुनौती एवं सेवा-साधना से कम नहीं
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है। लगभग ८० वर्ष पूर्व संस्थापित श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा कोलकाता शिक्षा, सेवा और साधना समन्वित इस बीज ने आज विशाल वट का रूप ले लिया है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के सभी आयामों को स्पर्श करते हुए श्री जैन सभा कोलकाता ने अर्थाभाव पीड़ित बंगाल के ग्रामीण विद्यार्थियों को निःशुल्क पाठ्यपुस्तक, ड्रेस एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान कर उन्हें उच्चशिक्षित बनाते हुए प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया जाता है। धन के अभाव में पढ़ाई से वंचित रहने वाले प्रतिभासंपन्न ग्रामीण विद्यार्थियों को खोजकर उनके पढ़ाई की समस्त व्यवस्था करना उनके शिक्षित होने में सहयोग करना किसी महायज्ञ से कम नहीं है।
चिकित्सा के क्षेत्र में भी शिवपुर हावड़ा में संचालित श्री जैन हास्पिटल एवं रिचर्स सेंटर असहाय अभावग्रस्त मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहा है। न्यूनतम शुल्क में असाध्य रोगों के निदान, परीक्षण, परामर्श एवं चिकित्सा का महद् कार्य जनजन के लिए प्रणम्य बन गया है। नेत्र शिविर, विकलांग शिविर, पोलियो एवं विभिन्न चिकित्सा शिविरों एवं ध्यान, योग एवं प्राणायाम शिविरों के माध्यम से जन-जीवन को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने में सभा सबसे आगे है। सभा के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ हेतु मेरी अशेष शुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ स्वीकार करें। "सभा" इसी तरह सेवा, सहयोग, सत्कार के पथ पर प्रशस्त होते हुए देश धर्म जाति के गौरव को बढ़ाये, यही शुभाभिलाषा है।
अष्टदशी / 240
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राजनांदगांव
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