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________________ किशोर जेवरिया "इशावास्यमिंद सर्व यत्किंच जगत्यां जगत जबकि हिन्दुओं में उच्च कहे जाने वालों ने शुद्रों के साथ हमेशा घटिया व्यवहार किया। यही कारण है कि हिन्दुओं में सबसे अधिक धर्मान्तरण हुआ है, वह भी निम्न समझे जानेवाले शुद्रों द्वारा अपवाद छोड़ दें तो ब्राह्मणों एंव वैश्यों में धर्मान्तरण नहीं हुआ। क्षत्रियों में भी जो धर्मान्तरण हुआ है वह अपने राज हिन्दुओं में जातिगत अथवा जान बचाने के कारण ही हुआ है। वह भी किसी विशेष भेदभाव एवं धर्मान्तरण काल खण्ड में । परन्तु शुद्रों ने लगातार तिरस्कार और जहालत झेलने के कारण धर्मान्तरण किया। वर्ण व्यवस्था के अनुसार अपने आपको श्रेष्ठ बताने के लिए शरीर से वर्णों की तुलना की गई, शरीर के उच्च भाग सिर को बुद्धि का निवास मानकर सर्वश्रेष्ठ बताया गया उसकी तुलना ब्राह्मण से की गई। वक्ष एवं भुजाओं को शक्ति का केन्द्र मानकर उसकी तुलना क्षत्रिय अर्थात् राजा से की गई। उदर भाग को व्यापार से जोडकर वैश्य एवं शरीर के निचले भाग पैरों को शुद्ध की संज्ञा दी गई। इस तरह से कई दृष्टान्त गढ़े गये । , अर्थात् यह दृश्मान सब ओर जो कुछ भी जगत है वह सब ईश्वर से आच्छादित है, ईश्वर में बसने योग्य है । उसमें ईश्वर विद्यमान है। उपनिषद की ये पंक्तियां यदि सही हैं तो फिर उपनिषदों को मानने वाले हिन्दुओं में ईश्वर के बनाये हुए मनुष्यों में भेदभाव क्यों ? वह यदि प्राणी मात्र में विद्यमान है तो फिर मनुष्यों में अछूत कैसे? हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग को अछूत अथवा शुद्र कहकर तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने वर्षों छला है और आज जब वह उनके समकक्ष खड़ा होने की स्थिि में आने लगा है तो यह उन्हें बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है। सदियों से समाज में दबे कुचले, तिरस्कृत एवं हेयदृष्टि से देखे जाने वाले उस वर्ग को अपने बीच खड़ा पाकर वे उसे पचा नहीं पा रहे हैं। दुनिया में अपने आपको सर्वश्रेष्ठ बताने वाले हिन्दू धर्म पर हम दृष्टि डालें तो विश्व में सबसे अधिक धर्मान्तरण यदि किसी धर्म में हुए हैं तो वह हिन्दू धर्म में इसका सबसे बड़ा कारण हिन्दुओं में जातिगत भेद भाव । एक जाति को उच्च वर्ग एवं एक जाति को निम्नवर्ग में बांटने के कारण मनुष्य में भेद Jain Education International किया गया, उनको छूने से परहेज किया गया इस कारण हिन्दुओं में सबसे अधिक धर्मान्तरण हुआ। बौद्ध, जैन, सिख, मुस्लिम अथवा ईसाइयों में जातियां हो सकती हैं परन्तु उनमें कार्य के अनुसार जातियां नहीं बनाई गयी, नहीं उनमें कोई छूत-अछूत रहा, चाहे वह धर्म उपदेशक रहा हो, चाहे विद्या प्रदान करने वाला रहा हो, सैनिक हो, व्यापारी हो अथवा जूते चप्पल बनाने वाला, अथवा सफाई करने वाला हो, सभी को पूजा स्थलों में जाने की पूर्ण स्वतन्त्रता रही है। किसी बौद्ध को कर्म के आधार पर मठ में जाने से वंचित नहीं किया गया, किसी को जाति के कारण मस्जिद में आने से नहीं रोका गया, ना ही कोई गिरजाघरों में प्रार्थना करने से वंचित किया गया। सभी सिक्खों को गुरुद्वारे में मत्था टेकने में वर्ण एवं वर्ग भेद नहीं किया गया। किसी हिन्दू ने इस्लाम अथवा ईसाई मत को स्वीकार किया हो तो वहां उसका स्वागत हुआ। उसे धर्म में समान अधिकार प्रदान किये गये । उसको किसी मस्जिद अथवा गिरजाघर में जाने से नहीं रोका गया। उसकी इबादत अथवा प्रार्थना के बाद किसी मस्जिद अथवा गिरजाघर को धोकर शुद्ध करने का नाटक नहीं किया गया। उसके छूने से कोई अपवित्र नहीं हुआ कि उसे अपने ऊपर गंगाजल छींटें मारना पड़े अथवा स्नान करना पड़े। धर्मान्तरण के अन्य कारण जैसे तलवार के बल पर अथवा लालच भी रहे हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसके कारण होने वाले धर्मान्तरण इतने नहीं रहे हैं गरीबी को कारण माने तो हिन्दुओं से ज्यादा गरीबी तो मुलसमानों में है। ० अष्टदशी / 1170 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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