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________________ श्रीमती रत्ना ओस्तवाल नारी सशक्तिकरण महज एक नारा नहीं है 1 हम कभी ऐसी टिप्पणियां सुनते हैं कि लिंग भेद एक पश्चिमी धारणा है। भारत देश में इसकी जरुरत नहीं है इस सोच को सिद्ध करने के लिए कई तर्क दिये जाते हैं जैसे अनादिकाल से देवी पूजा होती आई है। प्राचीन इतिहास में जैसे कई विदुषी महिला, शासकीय, प्रशासकीय महिला पुराणों में लोक कथाओं में, आगमों में नारी गाथा का सार्वभौम उल्लेख है और उनकी सेवा समर्पणा की लोक दुहाई देते हैं जिससे साबित होता है औरतों का मान सम्मान और आदर सदैव होता आया है। भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां औरतों को वोट देने का अधिकार मिला है। भारत का संविधान भी औरतों को, मर्दों को समान अधिकार का आश्वासन देता है। यह सभी बातें साबित करती हैं कि भारत की औरत समाज की स्वतंत्र व सम्मानित सदस्य है । कुछ सबूतों का पुल्लिंदा दर्शाता है कि - १ : भारत में प्रति १००० मर्दों पर ९३३ औरतें हैं। अधिकांश औरतें कुपोषण का शिकार होती हैं। २ ३ परिवार के भीतर लड़कियों को पोषण संबंधी भेदभाव का सामना करना पड़ता है, Jain Education International ४: परिवार में भी सबको खिलाकर अंत में और कभी-कभी कम खाना पड़ता है। ५ : ७६% मर्दों की तुलना में ५४% भारतीय महिलाएं साक्षर हैं । ६ : चाहे शासन हो या समाज परिवार में निर्णय लेने वाले पदों पर औरतों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। वर्तमान में ८% से कम संसदीय सीटों पर ६% से कम मंत्रीमंडलों और ४% उच्च और उच्चतम न्यायालयों में स्थान है। जीवन भर ७०% महिलायें परिवार के भीतर व बाहर हिंसा का सामना करती हैं। पुलिस रिकार्ड के अनुसार हर २५ मिनट पर यौन उत्पीड़न और यौन छेड़छाड़, ३४ मिनट पर बलात्कार, ४५ मिनट पर यौन उत्पीड़न और हर ४३ मिनट पर एक औरत से तलाक या अलगाव किया जाता है। सार्वजनिक मुद्दों पर विचार या चिंतन हेतु या औरतों पर होने वाले अमानवीय अत्याचारों पर दिया जाने वाला समय चाहे वह मिडिया हो, चाहे समाचार पत्र हो, चाहे नेताओं के भाषण हों, इन निर्धारित कार्यक्रमों में मात्र १४% जगह महिलाओं के लिए निर्धारित होती हैं। आज के आधुनिक परिवेश में प्रचार-प्रसार के माध्यम से कामकाजी महिलाओं को घुस्सैल, चिड़चिड़ी रिश्तों में निभाने में असफल बताया जाता है आज के आधुनिक सीरियल या विज्ञापनों की दुनिया में नारी को बढ़ा-चढ़ाकर चाहे यौन उत्पीड़न, शादी, माता पिता की भूमिका आदि उठाये गये महत्वपूर्ण मुद्दों पर अवांछनीय मजाक उड़ानेवाले, रीति रिवाजों पर कलंक रूप, शादी के बंधन का घिनौना रूप दर्शाकर नारी पात्र को कलंकित किया जाता है। आज भी प्रकाशन माध्यम में औरतों को सिर्फ हाशिये पर जगह मिलती है। विज्ञापन के जरिये अश्लील रूप में नारी के प्रदर्शन आदि के खिलाफ आवाज पर अनदेखा किया जाता है आज तक किसी भी प्रांत ने अश्लील विज्ञापन पर रोक नहीं लगाई है। भारत में कितनी औरतें रहती हैं ? पिछले समय की गणना के अनुसार भारत की कुल १.०३ अरब की जनसंख्या में ४९ करोड़ ६० लाख औरतें हैं इस अनुपात में तो एक हजार मर्दों के पीछे ९३३ औरते हैं। जनसंख्या की दृष्टि से ३.२ करोड़ औरतें गायब है। इसका अर्थ यह हुआ कि औरतें पैदा होने के पहले ही मार दी जाती हैं। कुछ कुपोषण, कुछ बलात्कारी की शिकारी होकर आत्महत्या करती हैं। माननीय अमर्त्य सेन के तर्क के अनुसार ३ २ करोड़ का हिसाब हमारे पास नहीं है। यह ० अष्टदशी / 109 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012049
Book TitleAshtdashi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupraj Jain
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta
Publication Year2008
Total Pages342
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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