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________________ प्रतिभाशाली निर्भीक विद्वान् प्रकाश हितैषी, शास्त्री, दिल्ली आदरणीय श्री पं० कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री जैनसमाजके मूर्धन्य विद्वानोंमें अग्रगण्य हैं । आप चारों अनुयोगोंके अधिकारी प्रतिभाशाली विद्वान् हैं । आपकी यह विशेषता है कि आप जैन विद्वानोंमें बड़े ही निर्भीक एवं स्पष्टवादी लेखक व प्रवक्ता हैं । आप बड़ी-बड़ी शक्तियोंके समक्ष भी यथार्थ बात कहने में कभी नहीं हिचकते हैं। शिथिलाचारका विरोध करनेपर आपको बड़ी-बड़ी उग्र शक्तियोंका कोपभाजन बनना पड़ा है। आपको अनेक तरहसे अपमानित करनेका भी प्रयत्न किया गया किन्तु आप कभी भी असत्य और शिथिलाचारके समक्ष झुके नहीं। आप हिमालयकी तरह अडिग रहे। आप शिथिलाचारका विरोध पीठ पीछे नहीं, किन्तु सन्मुख खड़े होकर करते हैं । जैनसन्देशमें आपका संपादकीय बड़ा महत्त्वपूर्ण और स्पष्टवादितासे भरा हुआ होता है। आपकी शिष्यमण्डलीमें बड़े-बड़े उच्चकोटिके विद्वान हैं, जो आपके गरुत्वकी गरिमाका प्रदर्शन करते हैं । जैनसाहित्यकी सेवाके लिए तो आपका जीवन ही समर्पित है । साहित्य तपस्वियोंकी गणनामें भी आपका अग्रिम स्थान है। इतना सब होते हुए भी आप निरीहवृत्तिके विद्वान् हैं। आपने समाजसे कभी भी कोई अपेक्षा नहीं रखी । ऐसे विद्वानका अभिनन्दन करके संयोजकोंने स्वयंको गौरवान्वित किया है। उनका अभिनन्दन तो सूर्यको दीपक दिखाना है। विद्वत्ताकी विभूति लक्ष्मीचन्द्र 'सरोज' एम०ए०, जावरा, (म०प्र०) पण्डितप्रवर कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री, मेरी दृष्टिमें उस गुलाबके प्रसून सदृश हैं जो कष्टरूपी कण्टकोंमें पलकर भी देश और समाजके हितमें गौरवकी गन्ध देता है। अब वे तपे तपाये गुलाब है, उनके कार्यों और कृतियोंकी महकसे आज भी देश और समाजका प्रांगण सुशोभित, सुरक्षित तथा सुवासित हो रहा है। पण्डितजीने चार-पांच दशक वर्षों तक, जिस स्याद्वाद विद्यालयमें प्राचार्य पदपर कार्य किया, जैन विद्याकी विचारधारा बढ़ाई, उसके जन्म और जीवनदाता प्रातःस्मरणीय गणेशप्रसाद वर्णीके अमोघ व्यक्तित्व और कृतित्वसे वे भला कैसे अप्रभावित रहते ? जिस शास्त्रार्थ संघके प्रमुख पत्र 'जैन संदेश के सम्पादनके माध्यमसे उन्होंने दो-तीन दशक वर्षों तक धर्म, समाज तथा साहित्यकी सेवा की, उस संघकी गतिविधियोंसे वे अनभिज्ञ अछूते रहते, यह तो असम्भव ही था। जिस विद्वत्परिषद्के वे एकसे अधिक बार अध्यक्ष रहे और जिसने सोनगढ़ अधिवेशनसे कानजी स्वामीकी विचारधाराको भी आगे बढ़ाया, पंडितजी समयसारकी दष्टि लिए निश्चयमूलक दृष्टिकोणसे वंचित रहते, ऐसा हो ही नहीं सकता था। __पंडितजो ज्ञानके धनी हैं, विद्वत्ताकी विभूति हैं, उन्होंने अनेक कृतियोंको जन्म और जीवन दिया। 'जैनधर्म पर तो उन्हें युवावस्थामें ही पुरस्कार मिल चुका था । पंडितजीने अपने शिष्योंको अपनेसे भी आगे बढ़ते देखना चाहा। महावीर जयन्तीपर श्री महावीरजीकी सभामे पंडित और डाक्टर नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्यकी प्रशंसा करते हुए भी प्रस्तुत पंक्तियोंके लेखकने उन्हें देखा था। एक वाक्यमें, उन्होंने हिमालयसदृश गंगायमुना जैसी विद्वान-सरिताओंको प्रवाहित करनेके लिए अपना ज्ञान वारि सौंप दिया है। पंडितजीकी व्यवहार और वात्सल्य मूलक अनेक बातें हैं। पंडितजीका दैनिक जीवन आदर्श और यथार्थका अद्भुत समिश्रण -२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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