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अपनी योग्यतासे सब कुछ कर बैठेगा। इस नियतिवादी दृष्टिकोणसे पुरुषार्थ गौण बन जायेगा। अतः अनेकान्तका लक्ष्य रखकर पक्षका आग्रह छोड़ना पड़ेगा, चाहे निश्चयका हो, चाहे व्यवहारका हो । जहाँ पक्षका आग्रह है, वहीं विवाद है। पंडितजीने कभी पक्षका आग्रह नहीं किया। यही कारण है कि जब व्यवहार पक्षवालोंने सोनगढ़से प्रकाशित शास्त्रोंका अपमान किया, तो पंडितजीने दुःखित हृदयसे जोरदार अपील निकाली कि सोनगढ़से प्रकाशित साहित्य हम सबके लिए पूज्य है। उसका अपमान करना अपने पैरपर कुल्हाड़ी मारनेके समान मूर्खतापूर्ण है। जिसे न पढ़ना हो, न पड़े, लेकिन बहिष्कार करना अनुचित है। युवा आचार्य मनि श्री विद्यासागरजी महाराजके दर्शन कर पंडितजीने जो श्रद्धा-भक्तिके उदगार प्रगट किये, वे अनुकरणीय है।
"जिन्होंने ऐसी कल्पना बना रखी है कि पूर्व कालकी तरह आजकल दिगम्बर साधुचर्याका परिपालन द्रव्य और भावरूपेण सम्भव नहीं है, वे श्री विद्यासागरजीके सांनिध्यमें रहकर उनका पवित्र रत्नत्रय आराधनाका आदर्श देखें। मैंने पूर्ण श्रद्धा-भक्तिसे आहार देकर महान् पुण्य लाभ लिया है। वे २८ मूल गुणोंका पालन करते हैं । वे सच्चे दिगम्बर जैन साधु हैं।" ये उद्गार उन की आदर्श साधुनिष्ठाके प्रतीक है। पंडितजीमें स्पष्टवादिता और सत्य निष्ठा कट-कुटकर भरी है। वे सच्चे गुणानुरागी विद्वान् हैं। उन्होंने अपने सत्य विचारोंको कभी ढहाया नहीं। अपने गुरुके द्वारा जैनधर्म और समाजकी भलाईके लिए स्याद्वाद महाविद्यालयरूपी जिस वटवृक्षका बनारसमें बीजारोपण किया गया था, उसको उन्होंने तन्मयतासे सिचित कर पुष्ट किया और उससे हजारों विद्वानरूपी फल समाजको अर्पित किये। वे एक महान गरुके आदर्श शिष्य है। पंडितजीने अपने गुरुकी समाधिमरणके समय तक खूब वैयावृत्ति की। उनके वियोगके समय उन्होंने जो दुःखी होकर उदगार प्रगट किये थे कि वर्णीजी जैसा महान् सन्त, निर्विकार महात्मा, विद्यारसिक आदर्श त्यागी होना बहुत कठिन है। आज समाजमें जो कुछ भी धार्मिक वातावरण देखने में
रहा है एवं विद्वानोंका समूह नजर आता है, यह सब वीजीकी कृपाका फल है। आज हम सब अनाथ हो गये हैं। फिर भी, वे साहसपूर्वक अपने गरुका अनुकरण करते हए विद्वद वर्ग, समाज तथा साहित्य निर्माणको दिशामें मार्गदर्शन एवं योगदान कर रहे हैं. यह हमारे लिये सौभाग्यकी बात है।
जीवन्त स्रोत
___ वीरेन्द्र कुमार जैन, बम्बई पण्डित कैलाशचन्द्रजी तो वर्तमानमें जिन शासनके एक जीवन्त स्रोत, पराकोटिके मनीषी और जीवनमें पंचमहाव्रतधारी मुनियोंमें भी बड़े महापुरुष हैं । पण्डितजीसे मिलनेका सौभाग्य ही न हुआ मेरा, अतः संस्मरणका खजाना मेरे पास कहाँ ? उनके प्रति मेरी शुभकामना ।
आदर भाव
बालचन्द्र शास्त्री, हैदराबाद पण्डितजी समाजके माने हुए विद्वान् है । उनके द्वारा कितनी ही संस्थाएं उपकृत हुई हैं । ऐसे लब्धप्रतिष्ठ विद्वानके लिये मेरे आदरभाव ।
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