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परिशिष्ट
प्रस्तुत ग्रन्थमें व्याकरणाचार्य के जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं पूर्व प्रकाशित सामग्री दी गयी है, उसके पूर्व प्रकाशित शीर्षक आदिका विवरण इसमें प्रकाशित शीर्षकोंके साथ यहाँ दिया जाता है_____ इस ग्रन्थमें प्रकाशित शीर्षक
अन्यत्र प्रकाशित शीर्षक आदि विवरण धर्म और सिद्धान्त १. तीर्थकर महावीरकी धर्मतत्त्व देशना : तीर्थंकर महावीरकी धर्मतत्त्व सम्बन्धी देशना, जैन सिद्धान्त
भास्कर किरण-१,२ १९७४ । २. जैन-दर्शनमें आत्मतत्त्व
: जैन दर्शनमें आत्मतत्त्व, ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन-ग्रन्थ,
१९५४। ३. निश्चय और व्यवहार मोक्ष-मार्ग : निश्चय और व्यवहार मोक्ष-मार्गका विशलेषण, श्री भंवरीलाल
: निश्चय और व्यवहार मोक्ष-मागका विश
वाकलीवाल स्मारिका, १९६८। ४. निश्चय और व्यवहार धर्ममें साध्य-: निश्चय और व्यवहार धर्ममें साध्य-साधकभाव, श्री सुनहरीलाल साधकभाव
अभिनन्दन-ग्रन्थ, १९८२ । ५. निश्चय और व्यवहार शब्दोंका : जैनागममें प्रयुक्त निश्चय और व्यवहार शब्दोंका अर्थाख्यानअर्थाख्यान
मरुधर केसरी मुनि श्री मिश्रीलालजी महाराज अभिनन्दन-ग्रंथ,
१९६८। ६. व्यवहारकी अभूतार्थताका अभिप्राय : व्यवहारको अभूतार्थताका अभिप्राय, दिव्यध्वनि वर्ष-१,
अक्तूबर-नवम्बर १९६६ । ७. संसारी जीवोंकी अनन्तता
: जीवोंकी अनन्तता ( अप्रकाशित ) ८. जैनदर्शनमें भव्य और अभव्य ': भव्य और अभव्य (अप्रकाशित ) ९. जीवदया : एक परिशीलन : जीव दयाका विश्लेषण, आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज
अभिनन्दन ग्रन्थ, १९८७ । १०. जैनागममें कर्मबन्ध
: कर्मबन्धपर विचार (अप्रकाशित) ११. कर्मबन्धके कारण
: आगममें कर्मबन्धके कारण, वीर-वाणी वर्ष-४१, अंक १२,१३
. . मार्च-अप्रैल, १९८८। . १२. गोत्र कर्मके विषयमें मेरा चिन्तन . : गोत्र कर्मके विषयमें मेरी दृष्टि (अप्रकाशित) १३. भुज्यमान आयुमें अपकर्षण और . : भुज्यमान आयुमें अपकर्षण और उत्कर्षण, जैनदर्शन १६ उत्कर्षण
सितम्बर १९३३ । १४. क्या असंज्ञी जीवोंमें मनका सदभाव है ? : क्या असंज्ञी जीवोंके मनका सद्भाव मानना आवश्यक है,
अनेकान्त वर्ष-१३, किरण-९, १९५५ । १५. सम्यग्दृष्टिका स्वभाव . : सम्यग्दृष्टिका स्वभाव, दिव्यध्वनि अप्रैल, १९६८ । १६. पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं औ : अक्रमबद्ध भी।
: ( अप्रकाशित ) १७. जयपुर खानियाँ तत्त्वचर्चा और उसकी : जयपुर ( खानियाँ ) तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा पुस्तकसे समीक्षाके अन्तर्गत उपयोगी
१९८२ । . प्रश्नोत्तर १,२,३, ४ की सामान्य समीक्षा दर्शन और न्याय १. भारतीय दर्शनोंका मूल आधार : भारतीय दर्शनोंका मूल आधार, वीर १९४५ ।
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