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भारतीय संस्कृतिके सन्दर्भमें 'हिन्दू' शब्दका व्यापक अर्थ
उक्त विधेयकके सम्बन्धमें जैन समाजकी ओरसे हिन्दू धर्मसे जैन धर्मकी पृथक् सत्ताको लेकर जो आन्दोलन चल पड़ा है, वह आन्दोलन गलत दृष्टिकोणपर आधारित है, ऐसा मेरा ख्याल है ।
"जैन हिन्दू नहीं है" या "वैदिक धर्म (ब्राह्मण धर्म) का ही दुसरा नाम हिन्दू धर्म है" ये दोनों मान्यतामें भ्रान्त है क्योंकि ऐतिहासिक तथ्य हमें इस बातको माननेके लिये बाध्य करते हैं कि जिन जातियों और जिन धर्मोको जन्मभूमि भारतवर्ष है, वे सब जातियाँ और वे सब धर्म हिन्दु शब्दके वाच्य अर्थमें समा जाते हैं।
अतः जैन समाजके लिये इस प्रकारका आन्दोलन करना उपयोगी नहीं हो सकता है कि "जैन हिन्दु नहीं हैं" या "जैनधर्म हिन्दु धर्म नहीं है।"
जैन समाजसे मैं तो यही निवेदन करता हूँ कि वह इस प्रकारके गलत दृष्टिकोणको बदले और इस आधारपर आन्दोलन करे कि सार्वजनिक और सरकारी क्षेत्रोंमें जो हिन्दू शब्दका संकुचित अर्थ प्रचलित है, वह बन्द हो जावे तथा सभी क्षेत्रोंमें हिन्दू शब्द भारतीयताके ही अर्थमें प्रयुक्त होने लग जावे ।
सन्मार्ग प्रचारिणी समितिके मंत्रीकी हैसियतमें जो पत्र मैंने भारत सरकारके पास भेजा है, उसकी नकल समाजकी जानकारी और मार्ग दर्शनके लिये यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। मान्यवर!
विषय-नियमका नाम अस्पृश्यता। अपर विधेयक । क्रमांक-बिल नं० १४ बी सन् ५४ का। विवादग्रस्त-धारा ३ की व्याख्या।
अस्पृश्यता अपराध विधेयक पारित होने और भारतवर्ष के समस्त धर्मावलम्बियोंके साथ जैनधर्मावलम्बियोंपर भी उसे लागू करनेका मैं इसलिये स्वागत करूँगा कि यह विधेयक जैनधर्म और जैन संस्कृतिको सैद्धान्तिक परम्पराके अनुरूप है।
इस पत्र द्वारा मैं आपका ध्यान केवल हिन्दू धर्मकी व्याख्यामें जो कमी रह गयी है, उसकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ।
ऐतिहासिक तथ्योंपर दृष्टिपात करनेसे यह बात स्पष्ट रूपसे ज्ञात हो जाती है कि हिन्दू शब्दका प्रयोग भारतीयताके ही अर्थ में करना चाहिये परन्तु आजकल साधारणतया हिन्दू शब्दका प्रयोग वैदिक धर्म (ब्राह्मण धर्म) को मानने वाले वर्गके लिये किया जाने लगा है जो कि भ्रान्त है और विधेयककी धारा ३ में जो हिन्दु धर्मकी व्याख्या की गयी है, उससे भी न केवल उक्त भ्रान्त धारणाका निराकरण नहीं होता, प्रत्युत उसको पुष्टि ही होती है।
अतः निवेदन है कि धारा ३ में हिन्दु धर्मकी व्याख्यामें निम्न प्रकार परिवर्तन कर दिया जावे । १-विधेयक में हिन्दू शब्दके स्थानपर भारतीय शब्दका प्रयोग कर दिया जावे।।
यदि किसी कारणवश विधेयकमें हिन्दू शब्दका रखना अभीष्ट ही हो तो धारा ३ में "हिन्दु धर्मके विकास या रूप" के स्थानपर “समस्त हिन्दू धर्मों" ऐसा परिवर्तन कर दिया जावे।
२-व्याख्यामें सिख, बौद्ध, जैन आदि धर्मोके साथ वैदिक धर्मका भी स्पष्ट उल्लेख कर दिया जावे ।
ऐसा करनेसे जैनधर्म और बौद्धधर्मकी वैदिक धर्मकी अपेक्षा स्वतन्त्र सत्ता, जो वास्तविक तथ्योंपर आधारित है-में कोई आँच नहीं आने पावेगी।
मै आशा करता हूँ कि मेरा यह उचित निवेदन स्वीकार कर लिया जावेगा और इस तरह जैन समाजमें विधेयकके प्रति जो विरोधकी लहर उठ खड़ी हुई है, वह या तो समाप्त हो जावेगो या उसका महत्त्व हो कुछ नहीं रह जायेगा।
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