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स्वतंत्र व्यक्तित्व के धनौ
• पं० कमलकुमार शास्त्री, टीकमगढ़
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उन दिनों में सागरमें रहता था । श्रद्धेय पं० जीसे कोई विशेष परिचय भी नहीं था । उस समय मेरी उम्र ही क्या थी केवल १९-२० वर्षकी लेकिन मैं भी पंडित कहलाने लगा था। मैंने सुन रखा था कि वीन में कोई बंशीधर नामके विद्वान रहते हैं। मैंने कल्पना कर रखी थी कि व्याकरणाचार्य है व्याकरणके विद्वान्, रूक्ष स्वभाव, नीरस विषयका अध्ययनसे नीरस जीवन, कड़ा व्यक्तित्व समाजसे दूर भागनेवाला एकाकीमन पसंद करनेवाले होते हैं । फिर वे कपड़े की दुकान करते हैं । और मैं भी डरता सा था कि व्याकरणके विद्वान् हैं वैसे ही रूखे स्वभाव के होते हैं इनसे क्या मिलना। ऐसे ही बहुत दिन बीत गये । मैं सागर छोड़कर पपौरा विद्यालय में अध्यापक हुआ । सन १९६५ की बात है उसी समय पपौराजी में भारत वर्ष के प्रसिद्ध मुनिसंघ आचार्य शिवसागरजी का चातुर्मास सम्पन्न हुआ। श्रद्धेय पं०जीको आमंत्रित किया गया। पहलीबार ही उनके दर्शन किए थे। सफेद खद्दरका कुर्ता, खद्दरकी धोती और सफेद टोपी, लम्बा कद, मिलनसार जीवन सरलताकी प्रतिमूर्ति, हंसमुख चेहरा, विनोद पूर्ण वार्तालाप, अगाध पांडित्य, मीठी वाणी, मधुर व्यवहार, सादा जीवन, उच्चविचार, स्वतंत्रता प्रेमी और जिन्होंने शिक्षा को कभी आर्थिक आधार नहीं माना । आजीविकासे भी स्वतंत्र और स्वतंत्र विचारोंसे भरा हुआ व्यक्तित्व । मेरी पुरातन धारणाओं से बिलकुल विपरीत पाया मैंने उनको । अतः देखकर प्रसन्नता हुई । और जब आपका भाषण हुआ सभा मंत्र-मुग्ध हो सुन रही थी । आपकी सम्यग्दर्शन की व्याख्या सम्यग्दृष्टि और उसका दर्शन (विचार) क्या है इसकी विवेचना पं० जी कर रहे थे । उन्होंने कहा कि मैं सम्यग्दर्शनकी व्याख्या किताबों, शास्त्रों और पुराणोंके माध्यम से नहीं बताऊंगा मैं तो सम्यग्दृष्टिके उन बहिरंग विचारोंकी चर्चा कर रहा हूँ जिसे वह व्यावहारिक जीवन में उतारता गहरे मत जाइए मैं कहता हूँ कि एक सम्यग्दृष्टि दुकान पर धोती लेने जाता है। वहीं दूसरा व्यक्ति भी था। सम्यग्दृष्टिने धोती दिखाने को कहा, दूसरा व्यक्ति भी धोती ही लेना चाहता है दोनोंने धोती देखी, दूसरा कहता है कोई अच्छी सी किनार वाली धोतो दिखाइए जबकि इसका सूत कपड़ा बड़ा सुन्दर था। सम्यग्दृष्टि बोला भाई किनार पहनोगे या धोती मुझे किनारसे मतलब नहीं मुझे धोती चाहिए शरीर को ढकनेके लिये । क्या
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मखमली क्या सूती। दूसरा बिगड़ पड़ा ऐसा क्यों कहते हो। यही तो बात है जिसने जीव और पुद्गलके स्वरूपको ठीक-ठीक समझा होगा वही इन बातोंको समझ पायेगा यही तो सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि में अन्तर है। हृदयसे जिस दिन ये भेद भाव निकल जायगा अच्छा क्या और बुरा क्या दोनों दूर खड़े होंगे। समताका रस वह रहा होगा, अंगरंगमें समझो वही सम्यग्दर्शन विद्यमान है। इस तरह पं० जीके प्रवचनने मुझे आकर्षित किया फिर तो कई बार बीनामें आपसे मिला। आपको लिखी हुई जैन तत्त्व मीमांसाकी मीमांसा, निश्चय और व्यवहार आदि किताबें पढ़ीं, चर्चा हुई तबसे ही पं० जोका बहुत भक्त हूँ।
उनके दीर्घजीवनकी मंगल कामना करता ।
सावर अभिनन्दन
● पं० लक्ष्मणप्रसाद जैन न्या० ती शास्त्री, मड़ावरा
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१ / आशीर्वाचन संस्मरण, शुभकामनाए २९
नय, प्रमाण -- सापेक्ष साधित पक्ष स्याद्वाद - अनेकान्तक धर्म-धर्मी, समावेशित वस्तु स्वभावी । अनेकान्त विश्व शान्ति, सुखका एक मात्र सावनोपाय |
अहिंसा, कर्मवाद अनीश्वरवाद इत्यादि जैनधर्मकी असाधारण विशेषताओं एवं क्रम, अक्रमबद्ध पर्यायोंके समालोचक तथा श्री भगवान कुन्दकुन्दाम्नाय यथानुपधिक सरस्वती पुत्र पं०जीका सादर अभिनन्दन ।
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