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२८ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्य जिनवाणीनन्दनका अभिनन्दन •विद्यावारिधि डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया, अलीगढ़
आदरणीय पंडितरत्न श्री वंशीधरजी व्याकरणाचार्यका अभिनन्दन उनकी गुणगरिमाका अभिवन्दन है । गुणकी वन्दना करना हमारा स्वभाव भी रहा है और परम्परा भी। जिनपंथी सदा गणोंकी वन्दना किया करते हैं।
नन्द शब्द मौलिक है जिसका अर्थ है पुत्र । पुत्र प्राप्तिसे बड़ा और अन्य कोई आनन्ददायिक प्रसंग नहीं होता है । इसी प्रसन्नतापर आधृत है आनन्द शब्द । नन्दका बहुअर्थयामा शब्द बना नन्दन । अभि उपसर्ग शुभ और विस्तारवादी है । इस प्रकार अभिनन्दन शब्दका अर्थ हुआ पुत्र प्राप्ति जैसा आनन्दातिरेक ।
पंडितजी जिनवाणीके वरदपत्र हैं। उन्होंने जिनवाणीमाताकी महनीय सेवा की है फिर न जाने कितने पुत्ररत्नोंका उन्हें असाधारण आनन्द भोगनेको मिला है। इसी सत्यको आधार बनाकर उनके प्रशंसक समुदायने इस शाब्दिक सत्कारको मूर्तरूप देनेका शभ संकल्प किया है। भावना है कि इस शुभ संकल्प प्रतिमें वे आशातीत सफलता प्राप्त करें, मेरी मंगल कामनाएँ है और भावनाएँ भी। मेरी सम्मतिमें यह काम कम-से-कम अर्द्ध दशाब्दि पूर्व हो जाना चाहिए था। वन्दनाके अवसरपर मेरी तमाम श्रद्धा सुमन शाब्दिक वातायनसे उन्हें सम्प्रेषित है ।
भावना और कामना है कि महामनीषी पंडित जी दश दशाब्दियोंका निर्बाध जीवन व्यतीत करें।
बुन्देलखण्डकी थाती .५० बालचन्द्र शास्त्री, नवपाराराजिम
बुन्देलखण्डकी माटी ऐसी है जिसने बड़े-बड़े वीरोंको जन्म देकर देशको स्वतन्त्र और समद्ध बनाया है और जैन विद्वानोंको जन्म देने में वह विश्रुत है। यथार्थता भी यही है कि अभी जितने भी गणमान्य विद्वान हैं उनमेंसे अधिकांश विद्वान् बुन्देलखण्डके ही हैं और इसका श्रेय परमपूज्य १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णीजीको ही है जिनकी जन्म स्थलो ग्राम हंसेरा (उ० प्र०) के पास वाले गाँव सोरई में हमारे परमविद्वान व्याकरणाचार्य पं. बंशीधरजीने जन्म लेकर बुन्देलखण्डको हो गौरवान्वित किया है।
आपने जैन समाजमें व्याप्त बुराईयों, रूढ़ियोंको दूरकर तथा ज्ञानके माध्यमसे नये प्रमाण और निश्चयनय, व्यवहार नयको स्थितिको स्पष्ट किया है। खानियाँकी तत्त्वचर्चा जैसी चर्चा में भी भाग लेकर प्रतिष्ठा प्राप्त की है।
देशकी स्वतन्त्रता प्राप्तिमें भी आपने प्रहरीका कामकर जेल यातनाओंको भी झेला है, उसमें आपके दढ संकल्पने ही काम किया है, और देशको स्वतन्त्रता प्राप्तिमें सहयोगी रहे हैं। यह देशभक्ति भी प्रशंसनीय है।
देश तथा समाजकी भारी-भारीका गई इन सेवाओंका प्रतिफल में मात्र अभिनन्दन करके ही हम संतुष्ट हो रहे हैं। जबकि ऐसे व्यक्तित्वके प्रति समाजका कर्तव्य होता है कि उनके प्रतिष्ठाके अनुरूप शोध संस्थान जैसी संस्था स्थापित कर दी जाती।
अन्तमें आपके उज्ज्वल भविष्य, यशस्वी और दीर्घायु जीवनकी भगवानसे प्रार्थना करता हूँ।
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