SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 590
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ / साहित्य और इतिहास : ३३ यहाँपर रखेंगे । मैं चाहता हैं कि इन सब बातोंपर यहाँ गम्भीर मंथन किया जाय और उनके विषयमें यथाशक्ति कार्यक्रम निर्धारित किया जाय । कार्यक्रम भले ही छोटा हो परन्तु ठोस होना चाहिये। उपसंहार विद्वत्परिषद्का यह अधिवेशन सिवनी जैसी सांस्कृतिक नगरीमें हो रहा है। यह नगरी जैन समाजकी दृष्टिसे काफी महत्त्वपूर्ण रही है और आज भी इसका वही महत्त्व है। यहाँ जैन संस्कृतिके अच्छे ज्ञाता और अनुभवी व्यक्ति रहे हैं और आज भी हैं । यहाँके बड़े-बड़े गगनचुम्बी जैन मंदिर मध्यप्रदेशके ख्यातिप्राप्त मन्दिरोंमें हैं । इस समय मंगलमय पंचकल्याणक जिनविम्ब प्रतिष्ठा भी यहाँपर हो रही है । सभी तरहकी सुन्दर और आरामदेह व्यवस्था यहाँको समाजने बाहरसे आये हुए जनसमूहके लिये की है और स्वागत समितिने हमारा स्वागत और आतिथ्य करने में कोई कमी नहीं रहने दी है। इसके पूर्व विद्वत्परिषद्के जितने अधिवेशन हुए हैं उन सबमें प्रातःस्मरणीय पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी महाराजको प्रत्यक्ष या परोक्ष छत्र-छाया हमें प्राप्त होती रही है। परन्तु दुःख है कि यह दशम अधिवेशन उनकी छत्रछायाके बिना सम्पन्न हो रहा है। पूज्य वर्णीजीके हृदयमें प्रत्येक विद्वानके अभ्युत्थानकी उदात्त भावना थी। उन्होंने जैन समाजकी सर्वाङ्गीण उन्नतिमें जो कार्य किया है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके द्वारा प्रचारित जिनवाणीके अध्ययन-अध्यापनको हमें निरन्तर जारी रखना है। अच्छा हो कि उनकी स्मतिमें जगह-जगह 'वर्णी स्वाध्याय-शालाएँ' स्थापित की जावें और उनके माध्यमसे हमारे विद्वान् समाजमें सम्यग्ज्ञानका प्रचार करें। __ अपना भाषण समाप्त करते हुए विद्वत्परिषदके माननीय सदस्यों, सिवनीकी जैन समाज और सभी उपस्थित जनसमुदायसे प्रार्थना है कि अज्ञान और कार्यशक्तिकी अल्पताके कारण जो त्रुटियों रही हों, आप सब उनपर ध्यान न देंगे। ५-५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy