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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : २३ बताना अच्छा नहीं समझा । फलतः उनकी दुकान एक विश्वस्त दुकान मानी जाने लगी और पण्डितजी जनजनके विश्वास पात्र हो गये। सामाजिक कार्यमें भी हाथ बटाते हए श्री नाभिनन्दन पाठशालाके संचालन में मंत्री बनकर कुशलता दिखाई तथा संस्थाको व्यवस्थित बनाया। मेरा भी यहीं बीनामें व्यापार करने में मन लग गया और इस तरह पण्डितजी और मेरा प्रतिदिन मिलना-जुलना होता रहा। इससे और अधिक निकटता होतो गयी और आज भी वह है। कभी-कभी मेरा जन भी उन्हीं के यहाँ होता है। पण्डितजी व्याकरणशास्त्रके विशेषज्ञ होकर भी विलक्षण दार्शनिक प्रतिभासे मण्डित हैं । व्यापार करते हुए भी सरस्वतीके सच्चे उपासक है। पण्डितजीकी विशेषता है कि वे प्रदर्शनसे दूर रहते हैं । वास्तवमें इने-गिने विद्वानोंमें वे एक हैं । वे अद्वितीय चिन्तनशील हैं। उन्होंने अपनी लेखनी और प्रवचनों द्वारा सोनगढ़ के उठे बवण्डरको नेस्तनाबत कर दिया। सोनगढ़के दृष्टिकोणके समर्थनमें लिखी गई 'जैनतत्त्व मीमांसा' के उत्तरमें आपने अकाट्य युक्तियोंसे युक्त 'जैनतत्त्वमीमांसाकी मीमांसा' लिखी । इतना ही नहीं 'जैनदर्शनमें कार्यकारणभाव', 'जैनदर्शनमें निश्चय और व्यवहार' तथा 'जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाको समीक्षा' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ भी आपने लिखे हैं । समाजने जो उन्हें उनकी सेवाओंके उपलक्ष्य में अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट करनेका जो निश्चय किया है वह उचित और स्तुत्य है। हम ऐसे नि:स्वार्थ सेवी एवं सरस्वतीके वरदपुत्र सिद्धान्ताचार्य-व्याकरणाचार्यजीको हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए उनके शतायुः होने को मंगल-कामना करते हैं । सम्पूर्ण जीवन बेमिशाल है • डॉ० जयकुमार जैन, संस्कृत विभाग, एस० डी० कालेज, मुजफ्फरनगर पूज्य पं० सरस्वती-वरदपुत्र पण्डित बंशीधर व्याकरणाचार्यका सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रीय, सामाजिक एवं धार्मिक सभी क्षेत्रोंमें बेमिशाल है। धार्मिक क्षेत्रमें तत्त्वका निर्णय कर उसे प्रकट करने में उनकी निर्भीकता जैन पण्डित परम्पराके लि. सर्वथा अनकरणीय है। उनकी यह निर्भीकता देखकर विगत वर्ष इन्दौरमें विद्वत्परिषद्को कार्यकारिणीकी बैठकमें मैं दंग रह गया। मेरी तो स्पष्ट धारणा है कि _'अपूज्याः यत्र पूज्यन्ते पूज्यानां च व्यतिक्रमः । त्रीणि तत्र प्रवर्धन्ते दुभिक्षं मरणं भयम् ॥ प्रसन्नताकी बात है कि जैन समाज पूज्य पुरुषोंका व्यतिक्रम न करके उनकी सेवाओंका आकलन कर रही है । मेरी हार्दिक मंगलकामना है कि पूज्य पण्डित जी दीर्घायुष्य होकर हम युवकोंका मार्ग प्रशस्त करते रहें तथा अपने सार्वजनीन व्यक्तित्वसे राष्ट्र, समाज एवं धर्मकी सेवा करते रहें। आगमनिष्ठ विद्वान् .डा. रमेशचन्द्र जैन, सम्पादक-पार्वज्योति, बिजनौर ___ श्रद्धेय पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य को देखनेका सुअवसर मुझे तब प्राप्त हुआ, जब मैं स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी में उत्तरमध्यमाका छात्र था। विद्वत् परिषदकी कार्यकारिणीकी बैठक बनारसमें आयोजित थी. उपी पिलसिले में पण्डितजी भी आये हुए थे। रात्रिमें स्याद्वाद प्रचारिणी सभाकी ओरसे विद्वानों का अभिनन्दन था । मङ्गलाचरणके बाद छात्रोंसे कुछ बोलनेके लिए कहा गया। समस्त छात्र चुप रहे । विद्वानोंके सामने क्या बोलते । कुछ साथियोंने मेरी ओर इशारा किया। छात्रोंकी ओरसे कोई कुछ न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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