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१ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाए २१ आप आगमके उनकोटिके विद्वान् हैं। ये हमेशा स्वतन्त्रजीवी रहे हैं। इन्होंने कभी भी सामाजिक संस्थाओंकी गुलामी स्वीकार नहीं की। इनका विचार है कि स्वतंत्र रहकर ही समाज सेवा की जा सकती है। अनेक पुस्तकें लिखी हैं । व्यवसाय करते हुए भी आपकी कलम निरन्तर चलती रहती है । वे दीर्घजीवी रहकर जनकल्याणकारी प्रमेव वे यही मंगल कामना है । जैन दर्शनके बंशीधर
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• पं०] दवाचन्द्र साहित्याचार्य, प्राचार्य श्री दि० जैन सं० महाविद्यालय, सागर
जिस प्रकार बंशीधर (श्रीकृष्ण) ने गीताकी वंशी ध्वनित कर, केवल अर्जुनको ही नहीं, किन्तु विश्व के मानवोंको पुरुषार्थ करनेके लिये जागृत क्रिया, कर्तव्य पालन करनेके लिये प्रेरित किया और गीताका उपदेश देकर कल्याणके पथका प्रदर्शन किया। मीतामें यह कथन ध्यातव्य है
स्वस्वे कर्मण्यभिरतः, संसिद्धि लभते नरः । स्वकर्मनिरतः सिद्धि, यथा विन्दति तच्छृणु ॥
अर्थात् - स्वभावजन्य गुणोंके अनुसार प्राप्त होनेवाले अपने-अपने कमोंमें सर्वदा प्रवृत्त होनेवाला पुरुष तदनुसार सिद्धिको प्राप्त करता है ।
इसी प्रकार जैनदर्शनके क्षेत्रमें बंशीधरने अपने तत्त्वज्ञानकी बंशीको ध्वनित कर मानव समाजको जागृत किया, कर्तव्य निष्ठ होनेके लिये प्रेरित किया एवं स्वकीय जीवन में महत्त्वपूर्ण कार्य किये ।
मौलिक समीक्षात्मक प्रन्थोंका सृजन कर मानवको स्वाद्वादात्मक आत्मकल्याणके मार्गपर प्रगति करने के लिये यथार्थ पथिक बनाया है । अतः हम उनके व्यक्तित्व और कृतित्वके विषयमे मंगलकामना करते हैं । " दीर्घायुरस्तु शुभमस्तु सुकीर्तिरस्तु सद्बुद्धिरस्तु धनधान्यसमृद्धिरस्तु ॥"
सिद्धान्त रक्षक
• डॉ० श्रेयांसकुमार जैन, महामंत्री -अ० भा० दि० जैन शास्त्रिपरिषद्, बड़ौत ( उ० प्र० )
आगम और अध्यात्मके तलस्पर्शी ज्ञानवाले महामनीषी सिद्धान्ताचार्य पण्डित बंशीधर व्याकरणाचार्यका व्यक्तित्व सिद्धान्त संरक्षक के रूपमें चिरस्मरणीय रहेगा, क्योंकि विगत पचास वर्षोमं जिन आगम विरुद्ध मान्यताओंका प्रचलन और प्रसार हुआ, उनका निराकरण पण्डितजीने आगम के परिप्रेक्ष्य में अपनी सिद्धहस्त लेखनी से किया ।
व्याकरण और न्यायके विषयोंकी विशद मीमांसाके साथ अध्यात्मके रहस्यको उद्घाटित करने वाले एकमात्र विद्वान् हैं । निश्चय व्यवहारकी आगमिक मीमांसा और खानिया तत्त्व चर्चा में आगम पक्षका प्रतिनिधित्त्व इनके जीवनका सर्वश्रेष्ठ कृतित्व है ।
अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रिपरिषद् के प्रमुख स्तम्भों में इनका श्रेष्ठ स्थान है । पण्डितजीने अपने जीवनका बहुभाग देव-गुरु-शास्त्रको मर्यादाके संरक्षण में समर्पित किया। आवं परम्पराका पोषण किया ।
जहाँ पण्डितजीका जीवन जैन सिद्धान्तके प्रचार-प्रसार में बीता, वहाँ उन्होंने राष्ट्रके हित में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्वयं को समर्पित किया। पण्डितजी संस्कृति, कला, ज्ञान तथा विद्वत्ता के मूर्तिमान प्रतीक है। समाज तथा राष्ट्रकी धरोहर है ।
सिद्धान्ताचार्यका अभिनन्दन सरस्वतीका अभिनन्दन है । हम मंगल कामना करते हैं कि इनकी अजस्र लेखनी दीर्घकाल तक आगम-प्रभावनाकी निमित्त बनी रहे ।
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