SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६ सरस्वती वरद्पुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ यहाँके ब्राह्मण जिमीतिया कहलाने लगे। जो कान्यकुब्ज ब्राह्मण पिछले सौ-दो सौ सालसे आकर बसे हैं, वे अपनेको कान्यकुब्ज हो कहते हैं व जिझौतिवासे अपनेको ऊंचा मानते हैं। गोल्लादेशका जो भाग जैजाकभुक्ति नहीं कहलाया वहाँ के ब्राह्मण गोलापूर्व कहलाते रहे । कुवलयमाला आदि ग्रन्थोंसे पता चलता है कि टबसे १२वीं शताब्दी के आसपास भारत के अधिकांश भागमें करीब १८ प्रमुख देश भाषायें बोली जाती थीं। इनमें से सभीकी पहिचान की जा सकती। वर्तमान भारतीय बोलियों व भाषाओंसे इनका काफ़ी मेल लगता है यहाँवर Historical Atlas & South Asia में के मानचित्रोंका प्रयोग किया गया है । आंध्र : वर्तमान तेलुगू भाषाका क्षेत्र अर्थात् आंध्र प्रदेश । कर्णाटक वर्तमान कन्नड भाषी प्रवेश, कुछ उत्तरी भागको छोड़कर समस्त कर्णाटक प्रदेश | सिंधु सिंधी भाषी । मुलतानको छोड़कर व कच्छको मिलाकर पाकिस्तानका सिंध प्रदेश | गुजर गुजराती क्षेत्र गुजरातका अधिकतर भाग व राजस्थानका घोड़ासा भाग । महाराष्ट्र मराठी भाषी गोआ, कर्णाटकका कुछ उत्तरी भाग विदर्भका काफ़ी भाग गोंड आदि जातियोंसे बसा था, व महाराष्ट्रका भाग नहीं माना जाता था । ताजिक : वर्तमान सोवियत संघ व चीनमें ताजिक भाषी प्रदेश । प्राचीनकाल में यहाँके यारकन्द व खोतान आदि में पंजाब आदिसे व्यापारिक सम्बन्ध थे व भारतीय संस्कृतिका काफ़ी प्रभाव था । टक्क पंजाबी भाषी पाकिस्तानी व भारतीय पंजाब सम्भवतः हरियाणाका कुछ भाग मुलतानको भी इसी क्षेत्र में माना जाना चाहिये । मह : राजस्थानी ( मारवाड़ी) प्रवेश । वर्तमान में मारवाड़ी व मालवीको सम्बन्धित माना जाता है । राजस्थानमें अरावलीके दक्षिणकी भाषाको मालवी माना जाना चाहिये । ब्रज-भाषी प्रदेशमें इस क्षेत्रके बाहर माना जाना चाहिये । मालव : वर्तमान मालवा व दक्षिणी राजस्थान । मगध बिहारी व भोजपुरी (पूर्वी उत्तर प्रदेश ) भाषी प्रदेश । कोशल: कोशल नामक दो स्थान थे। एक तो काशीके आसपास और एक मध्य प्रदेशके छत्तीसगढ़ क्षेत्रमें जो दक्षिण कोशल कहा जाता है। वर्तमानमें दोनों क्षेत्रकी भाषायें पूर्वी-हिन्दी के अन्तर्गत आती हैं। अतः कोशल देश- भाषाका क्षेत्र पूर्वी हिन्दी (अवधी, बघेली व छत्तीसगढ़ी ) का क्षेत्र ही माना जाना चाहिये । इसमें छत्तीसगढ़ीका दक्षिणी भाग नहीं माना जाना चाहिये जहाँ गोंड आदि जातियोंका निवास था । 1 मध्यदेश: इस शब्दका प्रयोग उत्तर भारतके काफ़ी भागके लिये किया जाता था। देश-भाषाओंके संदर्भ में, यह स्पष्ट ही यह वर्तमान पश्चिमी हिन्दी (हिन्दुस्तानी, ब्रज व बुन्देलखण्डी) क्षेत्रका उत्तरी भाग है जहाँ खड़ी बोली बोली जाती है । अन्तर्वेद यह गंगा-यमुनाके बीचका दोआव है। दोजाबेके अधिकतर भागको देश- भाषाकी ही यह संज्ञा होगी । गोल्ला : उपरोक्त क्षेत्रोंको निकाल देनेसे एक ही भाग बचता है-यमुना व नर्मदाके बीचका पश्चिमी हिन्दीका भाग, जिसमें ब्रज व बुन्देली बोली जाती है। इसके अधिकतर भागकी राजनैतिक गोल्लादेश से पहिचान कारकी ही जा चुकी है। मानचित्र - २ में ये सभी क्षेत्र दिखाये गये हैं। दक्षिणी मध्यप्रदेश, विदर्भ व उड़ीसा के काफ़ी बड़े भूखण्ड में आज भी बड़ी संख्या में गोंड आदि आदिवासी बसते हैं। प्राचीनकाल में इस क्षेत्रमें न तो महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy