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________________ २ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व ११५ माना जाता है, जो सही प्रतीत होता है । इनका गोलापूर्व जैनोंके साथ क्या सम्बन्ध है इसपर आगे विचार किया गया है । गोलापूर्व दजियों व कलारोंके बारेमें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है । गोलापूर्व डायरेक्टरीमें गोलापूर्व क्षत्रियोंका उल्लेख है, पर ऐमा लगता है इनका अस्तित्व नहीं है । गोलापूर्व ब्राह्मण कृषक है, उनके ही किसी समुदायको भ्रमसे क्षत्रिय मान लिया गया होगा। गोल्ला देशकी स्थितिका निश्चित प्रमाण श्रवणबेल्गोलाके दो लेखोंसे होता है। ये लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं व इनसे न केवल गोल्ला देशकी स्थिति, बल्कि बुन्देलखण्डके इतिहासपर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है। चन्द्रगिरिपर स्थित ई० ११६३ के एक लेखमें गोल्लदेशके गोल्लाचार्यका उल्लेख है। ई० १११५ के एक अन्य लेखमें 'चंदिल" कुलके, गोल्लदेशके भूपालका उल्लेख है। "चंदिल" निस्संदेह चंदेल कुलके लिये है। गोल्लदेश वही देश है जहाँ चंदेलोंका राज्य था। चन्देलोंका राज्य अक्सर जैजाकभुक्ति कहलाता है। अलविरूनोने लगभग ई० १०३० इसे जजहति कहा है।३१ यह नाम चन्देल जयशक्ति (लगभग ई० ८५५) के कारण पड़ा था जिसे जैज्जाक भी कहते थे।३२ इसी क्षेत्रका दूसरा व प्राचीनतर नाम गोल्लादेश था। ई० १५३१ में ओरछापर बुन्देलोंका राज्य हो जानेके कारण यह कालान्तरमें बुन्देलखण्ड कहलाया। गोल्लाचार्य कौन थे? ई० १११७ में, या उसके पूर्व चन्देल जयवर्मा गद्दीपर बैठे थे। जयवर्माने थोड़े ही समय बाद गद्दी छोड़ दी व उसके चाचा पृथ्वीवर्माका राज्य हआ। पथ्वीवर्माके पुत्र मदनवर्माके राज्यकालके ई० ११२९ से ११६३ तक लेख मिलते हैं। मदनवर्माके बाद उसका पौत्र परमाद्धि (परमाल) का राज्य हुआ जिसके ई० ११६५ से १२०१ तकके लेख मिलते हैं। हो सकता है जयवर्माने दीक्षा ली हो और उन्हें ही गोल्लाचार्य कहा गया हो । परन्तु सबसे अधिक सम्भावना मदनवर्मा की है । इस सम्भावनापर आगे विचार किया गया है। चन्देलोंके राज्यका विस्तार कभी कम, कभी अधिक रहा है । खजुराहोंके ई० ९५५ के लेखमें धंगका राज्य उत्तरमें यमुनासे लेकर दक्षिणमें चेदिको सीमातक, पूर्व में कालंजरसे पश्चिमो गोपाद्रि (ग्वालियर) व भेलसा (विदिशा) तक लिखा गया है।' मदनवर्माके लेखोंके विस्तारसे पता चलता है कि उसका राज्य खजुराहो, महोबा व कालंजर के अलावा भेलसा मउ (जि० झाँसी) तक रहा था। चन्देलोंके राज्यका अस्थाई विस्तार उत्तर-पश्चिममें कान्यकुब्ज व अहिच्छत्र तक रहा था। यह प्रतीत होता है कि चन्देलोंका राज्य ग्वालियर, भिडके आसपास कभी रहा था, पर स्थायीरूपसे नहीं। बुन्देलखण्ड वह क्षेत्र कहलाता है जहाँ बुन्देलोंका राज्य रहा था । मध्य प्रदेश में इसके दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर व पन्ना जिले है। सागर व दमोह जिलोंके उत्तरी भाग भी बुन्देलखण्डमें है। उत्तर प्रदेशमें झाँसी, हमीरपुर व बाँदा जिले बुन्देलखण्डमें माने जाते है । ग्वालियरके पास दतिया जिलेमें भी बुन्देलोंका राज्य रहा है । भिंड, इटावा व आगरा जिलेकी भाषा बुन्देली नहीं ब्रज मानी जाती है । अगर गोल्लादेशमें एक ही देशभाषा थी तो वहाँ वर्तमान में दो बोलियाँ कैसे हो सकती हैं ? वास्तव में बुन्देली व आगराभिडकी बोली लगभग एक ही हैं। इन्हें “पश्चिमी हिन्दी" कहा गया है। यह बात ग्वालियरके लिये भी लागू होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि गोल्लादेशका विस्तार उत्तर दक्षिणमें भिडसे सागर जिलेके उत्तरी भागतक था। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि बुन्देलखण्डके ब्राह्मण गोलापर्व नहीं कहलाते । इसका कारण स्पष्ट है । बुन्देलखण्डमें कान्यकुब्जसे ब्राह्मण आकर बसते रहे हैं । चन्देलोंके राज्यमें यह भाग जैजाकभक्ति कहलानेसे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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