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________________ २ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ८७ इस ग्रन्थके सुयोग्य सम्पादक श्रद्धेय आदरणीय डॉ० कोठियाजीने इसके सुन्दर सम्पादनमें काफी परिश्रम किया है । यदि अनेक स्थानोंपर भावों, सिद्धान्तों एवं चर्चाओं आदिकी पुनरावृत्तिसे बचा जाता, तो और सौन्दर्य आ जाता। इस ग्रन्थकी विशेषता है कि विद्वान् समीक्षकने मूल समीक्ष्य ग्रन्थ अर्थात् "जयपुर खानिया तत्त्वचर्चा" को भी इस समीक्षा-ग्रन्थके साथ प्रकाशित किया है, ताकि तटस्थ जिज्ञासु निष्पक्षभावसे मूल अंशका भी अध्ययन कर यथार्थता ग्रहण कर सकें। मूल ग्रन्थमें जहाँ शंकापक्षको "अपरपक्ष' नामसे प्रस्तुत किया गया है, वहाँ इस समीक्षा-ग्रन्थमें इसे 'पूर्वपक्ष' और समाधानपक्षको 'उत्तरपक्ष' नामसे प्रस्तुत करके प्राचीन न्यायशास्त्रको परम्पराके गौरवकी पुनः प्रतिष्ठा को गयी है। पर तत्त्वचर्चा अपने मूल उद्देश्य-वीतरागचर्चासे भटककर विजिगीषुचर्चा बन गयी । अस्तु । मुझे स्मरण है, जब मैं कटनीकी जैन शिक्षा-संस्थामें अध्ययन कर रहा था, उस समय सन् १९६४६५ के लगभग श्रद्धेय गुरुवर्य ५० जगन्मोहनलालजी शास्त्री, आदरणीय पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीको सहयोग देने हेतु उनके समीक्ष्य मूलग्रन्थ जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाकी कुछ विषय-सामग्रीका संकलन कर रहे थे, उनकी आज्ञानुसार उनके निवासपर प्रातः साफ प्रतिलिपि करने हेतु जाता था। अतः उस पुस्तकपर लिखे गये इस समीक्षा-ग्रन्थका मूल्यांकन (समीक्षात्मक अनशीलन) लिखना, मेरे लिए प्रसन्नताका विषय है। मैं पुनः समीक्षक विद्वान्को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हैं कि उन्होंने सैद्धान्तिक मतभेदोंकी समीक्षा शालीनतापूर्वक उच्च-समीक्षा-ग्रन्थ द्वारा करके एक स्वस्थ परम्पराका निर्वाह किया और साथ ही साथ तन्व-जिज्ञासुओंको लाभान्वित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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