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________________ ४६ : सरस्वती-धरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ संवर संवत् १५२६ के भाद्र मासमें शुक्ल पक्षकी परिवा, सोमवारके दिन पूर्ण हुई थी। कविके पिता पण्डित भीमदेव गोलापूर्व थे । उन्होंने लिखा है गोलापुव्ववंस सुपवित्त भीमदेउ पंडितवउ पुत्त संकर कया पुरह यह कहो दिक्खाकारण कीमउ चौपही संवत् पंद्रह मह हो गये वख्ति छव्वीस अधिक तह भए भादव सुदि परिवा ससिवार दिक्खा पखु तह अक्खियउसाउ अब यह कब्बु संपूरण भयउ सिरि हरिषेण संघ कहु जयउ ।।५५ पहण-ये सानपति गोलापूर्वके सुपुत्र थे। इन्होंने संवत् १५४० में "उत्तरपुराण" की रचना कर साहित्य-समृद्धिमें योगदान किया था ।५६ सुखदेव--ये गोलापूर्व विहारीदास पचविसेके सुपुत्र थे। इन्होंने संवत् १७१७ में “वणिप्रियाप्रकाश" की रचना की थी। इनके परिचयसम्बन्धी निम्न दोहे हैं गोलापूरब पचविसे वादि विहारीदास । तिनके सुत सुखदेव कहि वनिकप्रियाप्रकाश ॥ बरष संवत्सरके नाम । कवि करता सुखदेव कहि लेखक मायाराम ।।५७ ................ धनराज-ये शिवपुरीके राजनन्द गोलापूर्वके पुत्र थे। इन्होंने संवत् १६६४ के आसपास भक्तामरस्तोत्रका पद्यानुवाद कर उसका "भव्यानन्दपंचाशिका" नाम रखा था। यह सचित्र प्रति मुनि कांतिसागरके पास बताई गई है।८ खङ्गसेन-ये धनराजके चाचा जिनदासके पुत्र थे। इन्होंने (भक्तामरके) एक-एक काव्यपर पन्दहपन्द्रह पद्य बनाये थे ।५९ नवलशाह-इनके पिताका नाम सिंघई देवराय चन्देरिया और माताका नाम प्रानमती था। खटौरा इनकी जन्मभूमि थी। इनके तीन छोटे भाई थे-तुलाराम, घासीराम और खुमानसिंह । इनके पूर्वज भेलसीके निवासी थे। पूर्वजोंमें भीषम साहूने सं० १६९१ में प्रतिष्ठा कराई थी। उस समय ओरछानरेश जुझारसिंहका शासन था।६० इन्होंने सं० १८२५ में चैत्र शुक्ल पूर्णिमाके दिन “वर्द्धमान-पुराण" की रचना की थी।६१ वीसवीं शतीमें हुए इस अन्वयके निर्ग्रन्य मुनि:-इस शताब्दीमें मनि आदिसागरका नाम ध्यातव्य है। वे २८ मूलगुणोंके धारक थे । सरलता व और सन्तोषवृत्ति उनके जीवनके अंग थे । क्षु० चिदानन्दजी कठोर तपस्वी एवं ज्ञानप्रचारक थे। उनसे बुन्देलखण्ड बहुत प्रभावित रहा । क्षु० पद्मसागरजी अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी थे । इनकी समाधि द्रोणगिरिमें हुई थी। वर्तमानमें आचार्य विद्यासागरजी महाराजके संघस्थ मुनि क्षमासागरजी, मुनि गुप्तिसागरजी, ऐलक अभयसागरजी, क्षु० उदारसागर जी तथा अन्य संघस्थ मुनि विरागसागरजी, क्षु० कामविजयनंदिजीके नाम उल्लेखनीय हैं। विद्वान्–इस अन्वयके विद्वानोंमें सर्वाधिक वयोवृद्ध मनीषी पं० मुन्नालालजी न्यायतीर्थ रांधेलोय सागर एवं सिद्धान्ताचार्य पं. बंशीधर शास्त्री व्याकरणाचार्य बीनाके नाम उल्लेखनीय हैं। अनेक साहित्यिक रचनाओं द्वारा इन्होंने समाजको गौरवान्वित किया है। दर्शन एव न्यायके क्षेत्रमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालयसे सेवानिवृत्त रीडर डॉ० दरबारीलाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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